दिख नहीं रहा कहीं भी
कथित आम आदमी,
कह नहीं रहा कभी भी
लोकपाल लाजमी।
एक वृद्ध देश का
दिखा गया जो रास्ता,
दूर तक नहीं रहा
कहीं भी उससे वास्ता।
छल की राजनीति डूबी
गंगा जी की धार में,
लग गई है तेज आग
आज दुष्प्रचार में।
छद्म वेशधारियों
समाजवाद जान लो,
देश के विकास का
सरल सा सूत्र मान लो।
जातिवाद वंशवाद
देश का कलंक है,
जन विकास मन विकास
देश यह अखंड है।
राष्ट्र की पवित्र भक्ति
से विहान आयेगा,
भारती का जीत गीत
फिर विदेश गायेगा।
सभी सुखी सभी निरोग
है ये पुण्य भावना,
स्वार्थ की बलि चढ़े
यही पुनीत कामना।
रजनीकांत।
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