जूम मीटिंग के द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर 'गंगा महासभा' के द्वारा राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति की मीटिंग शनिवार 5 जून 2021 को संपन्न हुई ।
इस बारे में जानकारी देते हुए गंगा महासभा बिहार-झारखंड के उपाध्यक्ष धर्म चंद्र पोद्दार ने बताया कि पर्यावरण का मतलब ही है नदियां । नदियों के जल के बिना पर्यावरण की कल्पना नहीं हो सकती है । नदियों को संरक्षित रखना पर्यावरण की सुरक्षा है । गंगा नदी इसमें मुख्य है ।
श्री पोद्दार ने भी ज़ूम मीटिंग में अपने विचार रखे ।
पोद्दार ने कहा कि स्थानीय स्वर्णरेखा नदी झारखंड की गंगा है । इसके बड़े भूभाग को स्थानीय टाटा कंपनी ने दखल कर मेरीन ड्राइव नामक एक रोड का निर्माण किया है ।
टाटा कंपनी को अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए नदी के दोनों किनारों पर पेड़ अवश्य लगवाने चाहिए । जिससे बची हुई नदी सुरक्षित रह सके ।
कहा कि कंपनी ने साकची में जो वाटर हाउस बनाया है , वहां पर नदी में बांध जैसा बनाया गया है और वहां से पानी का अंधा-धुंद दोहन किया जा रहा है । पानी को आगे बढ़ने नहीं दिया जा रहा है परिणाम स्वरूप आगे की नदी लगभग सुखी है ।
श्री पोद्दार ने कहा कि नदी के जल पर मनुष्य जाति के अलावा पशु पक्षियों का भी उतना ही अधिकार है । ईश्वर प्रदत्त नदी का जल सभी जीव-जंतुओं के लिए है ।
पोद्दार का यह भी कहना है कि मनुष्य जाति का जितना अधिकार जल पर है , उतना ही अधिकार पशु एवं पक्षियों का भी है ।
मनुष्य जाति के हिस्से का जल टाटा कंपनी दोहन सरकार की शह पर कर सकती है लेकिन उन मूक पशु-पक्षियों के जल का भी दोहन करना उचित नहीं है ।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पोद्दार के द्वारा कही गई बात को काफी सराहा गया ।
श्री पोद्दार ने यह भी बताया कि शीघ्र ही वे स्थानीय जिला अधिकारी को इस बारे में पत्र देकर उचित कार्यवाही करने की का आग्रह करेंगे ।
बैठक में राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रेम स्वरूप पाठक जी , राष्ट्रीय महासचिव स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती जी , राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) गोविंद शर्मा जी के अलावे डॉ माधवी तिवारी , शिवम चौबे , धर्म चंद्र पोद्दार , राजन भारद्वाज , देवेंद्र कुमार तिवारी , श्रीमती विजयश्री सिंह , डॉ हरिशंकर कंसाना , अजय उपाध्याय , स्वामी श्रद्धानंद , शरद भारद्वाज , नवीन कुमार , अभिनव सिंघल , नीरज बदलानी , आर पी सिंह , सतीश कुमार पाठक , श्रेयस कोराने , वासुदेव सिंह , कु० शैलेंद्र सिंह गुर्जर , आचार्य चंद्रकांत जी आदि उपस्थित थे ।
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