
मातृभाषा,माँ-बाबा का सम्मान
कर दुखो के सायो से ,पहन कर सूती साड़ी
माँ तू सभी बलाओ को भगाती है।
मेरे दूखो के साये को नीबू मिर्ची वार कर अपार स्नेह
लुटाती है।।
हालातो के थपेड़ो से जब मै टूटने लगती।।
तेरा मुस्काता हुआ चहेरा मंजिल दिखाता है।
कभी फटकार कर सिखलाती।।
कभी करुणामय हो जाती ।।
तेरी गोद मे सिर रख कर सुकून दिल को आता है।।
साधारण परिवेश अपनाकर
तूने हमे इंसानियत का पाठ सिखलाया।।
चार किताबे पढ
हाय! कैसा समय आया।।
माँ पुरानी लगती क्यो
मातृभाषा बोलना रास न आया।।
आधुनिकता के चलन ने नये जमाने वाला विदेशी
राग है सिखलाया।।
विदेशी बोली बोल कर इतराते।।
मातृभाषा को धूमिल न करो प्यारे।।।
ये न होती तो बोलना भी नही आता।
मेरा संदेश नवीन पीढ़ी के लिए •••
करबद्ध होकर कहना चाहती हूँ••••••
माँ का सम्मान, मातृभाषा से प्रेम करे जो
वही ईश्वर के समक्ष बुद्धिजीवी कहलाता है।
माँ -बाबा और मातृभाषा को श्रेष्ठ जो माने
वही जगत मे सर्वश्रेष्ठ इंसान कहलाता है।
आकांक्षा रूपा चचरा
कटक ओडिशा
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