देकर बलिदान
सीखों के नवें गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान दिवस पर रचित।
(कविता)
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✒️--:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र 'अणु'
मदांध औरंगजेब,
हिंदुओं,काश्मीरी पंडितों को-
चला बनाने बल से मुसलमान।।
थी विकट परिस्थिति,
दुखद,विपरीत पंथ-रीति
अल्लाह को याद कर पढ़ कुरान।।
आक्रांता मुगल आततायी,
सनातनी को बना रहा अपना अनुयायी-
रख रोजा-नमाज भूलकर भगवान।।
उस कुसमय में,
बचाने को सनातन परंपरा-
खड़े हुए गुरु तेग बहादुर छाती तान।।
देख अपने धर्म का विरोध
वे खड़ा करते रहे गतिरोध
बस खडका मुगल का कान।।
कबूल लो तुम इस्लाम
बन जाओ अल्लाह का गुलाम
तब हम बक्स देंगें जान।।
गुरू ने गरूर से कहा
न होने देंगें हम तेरा मनचाहा
मैं और मेरा धर्म है दोनों महान।।
न मानेंगे हम तेरा उपदेश
शर कटा देंगें न कटायेगें केश
भरा हुआ है गर्व और जातिय मान।।
औरंगजेब ने शर कटवा दिया
पर कभी गुरु ने उफ् न किया
बचा लिया धर्म रख स्वाभिमान।।
शीश गंज में कटा था शीश
रकाब गंज में हुआ अंतिम संस्कार
बता रहा इतिहास हो लहुलुहान।।
सीखों की गुरु परंपरा
पवित्र करता रहा है धरा
देकर अपना बलिदान।।
पुत्र गुरु गोविंद सिंह जी ने भी
समझौता नहीं किया कभी
बने योग्य पिता के सुयोग्य संतान।।
वलिदाद अरवल (बिहार)
संपर्क--8340781217.
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