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कर रहे विध्वंस हो निर्माण कैसे मान लूं मैं

कर रहे विध्वंस हो निर्माण कैसे मान लूं मैं


छीन कर तू हक हमारे नित नए सपने दिखाते।  
 कर सकोगे स्वप्न को साकार कैसे मान लूं मैं।।
      कर रहे विध्वंस---

हैवानों के शान हो तू इंसान कैसे मान लूं मैं।
हो रहा क्षण- क्षण पतन उत्थान कैसे मान लूं मैं।।
     कर रहे विध्वंस----

विधि व्यवस्था और किसी विकृति पर अंकुश नहीं।
न्याय और कानून का, है राज्य  कैसे  मान  लूं मैं।।
      कर रहे विध्वंस----

नैतिक पतन के दौर में धावक बने हो तेज  तू। 
परतोष पाना है तुझे , रुकोगे कैसे मान लूं मैं।।
  ‌      कर रहे विध्वंस--- 

स्वयंभू मसीहा बने गरीबों के, भरते हो अमीरों के खजाने।
देखकर सच्चाई यह झूठ कैसे मान लूं मैं।।
    कर रहे विध्वंस---

सिद्धांत पर विश्वास न रहा , व्यवहार में कुछ कर दिखाओ।
सत्य कहता देखकर मैं , कह दे "विवेक" तो मान लूं मैं ।।
       कर रहे विध्वंस हो-

डॉक्टर विवेकानंद मिश्र 
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भारतीय राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा    आवास--
डॉक्टर विवेकानंद पथ, गोल बगीचा, गया बिहार
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