बेरोजगारी और युवा वर्ग
अतीत में हमारी युवा शक्ति अनेक विषंगतियो तथा विघटनकारी शक्तियों से जूझती रही वहीँ दासता के घातक प्रभाव तथा सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक आघातों से टूटकर अवैध कार्यो में लिप्त होने लगी जो भारतीय समाज और राष्ट्र के लिए अशुभ संकेत है । आज का युवा इसलिए शिक्षा प्राप्त करना चाहता है ताकि उसे अच्छी नौकरी मिले जिससे भोगपरक जीवन जीने का आनंद उठाया जा सके। इसी आनंद के तलाश में असफल होने पर वह अवैध तरीके से धन कमाने की चेस्टा करता है,जो उसके जीवन मे जहर घोलता है । अपराधियों और अराजक तत्वों ने ऐसे ही युवाओँ को गुमराह कर अपना उल्लू सीधा कर रहा है ,आज शराब तस्करी में युवाओं को प्रलोभन देकर शामिल किया जा रहा है । अगर युवा रोजगार विहीन है,तो परिवार और समाज उसे प्रोत्साहन देने की जगह हतोत्साहित करता है,जिससे वह जीवन से निराश हो विघटनोमुखी हो जाता है । सरकारी नीतियों की निरीहता,सतह से दुरता - दर्शनीय बनकर युवाओँ को निष्क्रिय बनाने में कोई कसर नही छोड़ती । सरकारी संस्थानों में युवा विकास का राग तो अलापा जाता है, किंतु वास्तव में वहां सार्थकता नजर नही आती । आज युवा को इतना विभाजित,कुंठित और लाचार बना दिया गया है कि उसकी शक्ति को संगठित होना दुष्कर प्रतीत होता है । देश के भविष्य से सीधे जुड़ा युवा आज अनिश्चितता के चौराहे पर खड़ा है,किसी की भी उंगली पकड़ चलने को त्तपर है। अब समाज चिंतन के ठीकेदारो को सोचना है कि आज के युवा भर्मपूर्ण वातावरण में अनिश्चितताओं के भंवर में गोते खा रहे युवाओं को सही अंगुली पकड़ना कौन सिखाएगा । आज सभी को युवा पीढ़ी से शिकायत है कि वह दिशाहीन हो चुकी है,या नौजवानों की पूरी पीढ़ी पश्च्यात रंग में रंग चुकी है ,बड़ो का आदर सम्मान करना भूल गई है और भी ऐसे बहुत से इल्जाम आज युवा पीढ़ी पर लगाये जा रहे हैं । लेकिन सवाल उठता है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है ? मनोचिकित्सको और समाज शास्त्रियों के अनुसार कहा जाता है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है ,काफी हद तक भारतीय नौजवान पीढ़ी आज इसी विमाड़ी के शिकार हो चुकी है । विडम्बना यह है कि देशहित से सीधे जुड़ी इस वेरोजगारी की समस्या को कोई भी गम्भीरता से नही लिया । भले ही कुछ लोग बेरोजगार के नाम पर संस्था बनाकर गोरख धंधा कर युवाओं को ठग रहा है । हैरत की बात है कि यदि एक चपरासी का पद निकलता है तो उसके लिए हजारों आवेदन आते है इनमें से सैंकड़ो उम्मीदवार एमए,पीएचडी,एमटेक, होते है । आज का युवा वर्ग एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है,जहाँ से निकलने की हर रास्ता बंद गली पर खत्म होता नजर आता है । इनके हाथों में डिग्रियां है,मन मे कुछ कर दिखाने की हसरत है पर इनके माथे पर चिंता की गहरी लकीरें साफ दिखती है ।देश के दो सौ विश्वविद्यालयो से हर वर्ष दस हजार लोग पीएचडी करते है उनमें से सिर्फ पांच दस प्रतिशत को ही नौकरी मिल पाती है। वाकी बचे हुये एमए पीएचडी प्राइवेट स्कूलों में तीन से पांच हजार रुपये महीने में पढ़ाने को अभिशप्त है, घर घर ट्यूशन करके पेट पालने को विवश है । आज के युवक युवतियों में रचनात्मक ऊर्जा और वौद्धिक प्रतिभा प्रचुर है,पर रोजगार के अवसर नगण्य है। युवा वर्ग ईमानदारी के साथ कर्तव्य पालन करते हुए चैन की जिंदगी गुजरना चाहता है । मगर वर्तमान व्यबस्था ऐसी है कि इंसान को ईमानदारी और जीवन मूल्यों के साथ जीवन आसानी से गुजरने नही देती । प्रशन, यह है कि आरक्षण के चलते योग्य नवयुवकों और नवयुवतियों को रोजगार नही मिलेगा,तो वो कहा जायेंगे, क्या करेंगे ? बूढ़े माँ बाप की जिम्मेदारी कैसे वहन करें अपनी पत्नी और छोटे छोटे बच्चों का पेट कैसे पाले ? वर्तमान स्थिति यह है कि सासन ने सरकारी नौकरियों को लगभग फ्रिज कर दिया है , इस वजह से बेरोजगारों की भारी भीड़ सड़क पर खड़ी हुई है । उच्च शिक्षा के बाद भी नौकरी न मिल पाने से पूरी व्यवस्था के प्रति आक्रोश है । निक्कम्मे पन और निठल्लेपन का अहसास दीमक की तरह इनकी प्रतिभा को चाटता जा रहा है । दो पैसे कमाने की पारिवारिक दबाव है । समाज के ताने बाने और व्यंग बाण है। नौकरियों के लिए बैंक ड्राफ्ट भरते भरते आर्थिक स्थिति जर्जर हो चूंकि है ।इस वजह से युवा वर्ग अपराध और हिंसा के दलदल में उलझ जाता है,तो कभी नशीले व्यशनो का गुलाम बनकर रह जाता है । युवा पीढ़ी का दुर्भाग्य यह है कि उसे केंद्र में रखकर किसी ने गहन चिंतन नही किया न नीति आयोग ने नही सासन ने न कोई राजनीतिक पंडितों ने सभी ने युवाओं को ठगने का काम किया है ।
कभी युवकों को बेरोजगारी भत्ता का झुनझुना थमाकर बहला जाता है तो कभी उसे ऋण उपलव्ध कराने के जुगनू दिखाकर फुसलाया जाता है तो कभी नौकरी के लुभावने आंकड़े दिखाकर बहलाया जाता है, इसमे कुछ गोररख धन्धी की भी चांदी हो जाती है जो प्रोजेक्ट बनाने के नाम पर पंद्रह से बीस हजार बसूल लेता है पर इस दिशा में सार्थक पहल की जानी अभी बाकी है। आज पहली आवश्यकता यह है कि बेरोजगार युवाओं के भविष्य को लेकर प्राथमिकताओं के आधार पर राषटीय स्तर पर सार्थक चिंतन किया जाए । क्योंकि युवाओं के भविष्य के साथ ही इस देश का भविष्य जुड़ा है । इसलिए आज युवा को सरकारी नौकरी के भरोसे हाथ पर हाथ रखकर नही बैठना चाहिए । स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ाना चाहिए । यह सत्य है कि युवाओं के लिए सरकारी नौकरियों के दरवाजे बंद है,पर युवाओ को उनसे सर टकरा टकरा कर अपने आपको लहूलुहान नही करना चाहिए । बेरोजगारी की समस्या का हल सरकारी दावों जादू मन्त्रर,फुंकर कर देने से नही होगा । अच्छे दिन आयेंगे के सपना संयोगे नौजवानों नौकरी ही करने की मनोवर्ति में बदलाव लाओ ।इस बेरोजगारी के पहाड़ से टकराकर चूर होने से बचाने के लिए स्वरोजगार अपनाना आवश्यक है ।आज कई युवा बटेर ,मुर्गी,गाय, सुअर,बकरी पालन कर जीवन यापन कर रहे है ।
लेखक प्रेम कुमार,प्रेम यूथ फाउंडेशन बिहार के संस्थापक है |
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