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कह रहा है पेड़

कह रहा है पेड़

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कह रहा है पेड़ मत काटो मुझे

क्यों लगे हो तुम प्रकृति को
नष्ट करने में
आने वाली पीढियों को 
त्रस्त करने में

बँट गये हो तुम न अब बाँटो मुझे

मैं तुम्हारे जीव को
जीवन बनाता हूँ
और बस हर सांस में
मैं गुनगुनाता हूँ

छट गया उपवन न अब छाँटो मुझे

जब न हूँगा मैं उडे़गी 
धूल धरती पर
खूब फैलेगा प्रदूषण 
रहना परती पर

तब कहूँगा ,और अब काटो मुझे

सिर्फ सूरज का यहाँ 
पर ताप बरसेगा
नीर के खातिर यहाँ 
हर जीव तरसेगा

फिर कहूँगा मैं न अब ताको मुझे

क्यों चलाते हो कुल्हाडी़ 
स्वयं पाँवों में
बिन मेरे क्या रह सकोगे
कभी छाँवों में

हैशियत मेरी न कम, आँको मुझे

इसलिये करते रहो सब
पेड़ का रोपण
तब कहीं होगा धरा से 
दूर प्रादूषण

सोच लो उपयोगिता जाँचो मुझे
          *
~जयराम जय
वास्तुविद् एवम् कवि
'पर्णिका'बी-11/1,कृष्ण विहार,आवास विकास,
कल्याणपुर,कानपुर-208017(उ०प्र०)
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