पिता का ममत्व
जिस बेटी को बचपन से मिला हो
सिर्फ पिता का प्रेम
वह प्रेम दूर नहीं होगा
माँ के ममत्व से भी
उस पिता को रखना पड़ता होगा
हर वक़्त जिंदा अपने भीतर
एक माँ को
ताकि बेटी जब भी करे
अपनी माँ को याद
वह पिता में देख ले उसकी सूरत
पर एक पिता के लिए
कितना संभव है माँ का ममत्व दे पाना
बेटी के व्यक्तित्व विकास के लिए
अपने प्रेम का रूपांतरण कर पाना
मैंने तो बस यही समझा है
कि जिसने जान लिया है
प्रेम के शाश्वत स्वरूप को
उसके लिए प्रेम निरंतर बहने वाली
वह धारा है
जिसमें समाहित है
मां और पिता का प्रेम
वेद प्रकाश तिवारी
देवरिया ,उत्तर प्रदेश ।
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