वही दौर पुराना बचपन का
वही दौर पुराना बचपन का
मैं पचपन में जी लेता हूं,
संग साथ मेरे नाती पोते
छीन झपट खा पी लेता हूं।
कभी खेलता जाकर पानी में
उनके संग छप छप करता हूं,
कभी बनाता रेत घरोंदे
तोड़ फोड़ खेला करता हूं।
लग जाती जो चोट किसी को
झूठ मूठ मैं भी रोता है,
फूंक मारकर दवा बताता,
जादू से खुश कर देता हूं।
जहाज हमारे भी चलते थे
बच्चों को बतलाता हूं,
बच्चे यकीन नहीं करते
जहाज बना दिखलाता हूं।
कागज की प्यारी सी कश्ती
मचल मचल लहरों पर डोले,
पीछे पीछे पानी में मैं भी
कुछ दूर बच्चों संग जाता हूं।
कभी साथ लेकर बच्चों को
किसी बगीचे में जाता हूं,
कैसे तोडें आम पेड़ से
चढ़कर अब भी दिखलाता हूं।
प्रकृति के सान्निध्य का
लाभ सभी को समझाता हूं,
संस्कार संस्कृति क्या है,
खेल खेल में सिखलाता हूं।
अ कीर्ति वर्द्धन
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