कभी सोचा है
सोचा है कभी क्या मिल - जुलकर,
हम एक नया इतिहास बनाते।
अपने समाज के दुःखियों के
चेहरे पर मुस्कान बिछाते ।।
कभी सोचा है।
हम हाड़- मांस के इस जीवन के,
सदुपयोग का गौरव पाते,
तो हंस उठते फिर रोम-रोम
यदि इस पथ को दिल से अपनाते।।
कभी सोचा है।
पूर्वजों से मिली विरासत को,
आदर्श रूप में अपनाकर
औरों को भी प्रेरित करते,
अपने समाज का दुःख हरते।।
कभी सोचा है।
न सोचा गर अपने "विवेक" से,
अब सोचो परहित में काम करें।
इतिहास बनाना है मिलकर,
क्षण भर भी नहीं विश्राम करें।।
कभी सोचा है ।
डॉ. विवेकानंद मिश्र,
डॉ. विवेकानंद पथ गोल बगीचा, गया (बिहार)।।
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