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कारगिल

कारगिल

किसी की हार का जश्न, यूं मनाया नहीं करते,
गद्दारों के ज़ख्मों पर मरहम, लगाया नहीं करते।
माना कि मानवता हमारा धर्म और संस्कार है,
दुश्मनों से हमदर्दी, कभी गले लगाया नहीं करते।

भौंका है खंजर पीठ में, जब भी भरोसा उस पर किया,
इतिहास के पन्नों में हमला, शिवा पर हुआ लिखा हुआ।
हो शान्ति मधुर सम्बन्ध पड़ोसी से, था सपना अटल का,
शान्ति प्रयास पर पाक ने, नापाक कारगिल लिखा हुआ।

थे शिवा सचेत, जो अफजल के खंजर से बच गये,
गले मिले पर बाघ नख से, उसको हलाक कर गये।
पाक पर हमने भरोसा, जरूरत से ज्यादा कर लिया,
मुशर्रफ जैसे दरिंदे, दोस्ती की आड़ कारगिल कर गये।

है गर्व हमको सेना पर, जो मौत से भी खेलते,
गोली बारूद बम खिलौने, सीने पर ही झेलते।
रूकते नहीं झुकते नहीं, आंधियां या तुफान हों,
कारगिल की चोटियों पर, बस दुश्मनों को बेंधते।

कौन डरता है समर में, मौत किसकी कब होगी,
लक्ष्य बना दुश्मन की गर्दन, मुट्ठियों में अब होगी।
हो कठिन सीधी चढ़ाई, या समन्दर का अतल,
जीतना ही सीखा हमने, अब मौत दुश्मन की होगी।

फहरा दिया तिरंगा शिखर पर, कारगिल को जीत कर,
फिर पाक को औकात बता दी, कारगिल को जीत कर।
गर्वित है भारत की भूमि, पाकर अटल से लाल को,
विश्व में सिंहनाद कर दिया, सेना ने कारगिल को जीत कर।

अ कीर्ति वर्द्धन
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