कथा है वाल्मीकि की
---:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र 'अणु'
एक दिन महर्षि
कर रहे थे अवलोकन
अपने वन-कानन।।
फुदक रहा था क्रौंच का जोड़ा,
कभी दूर कभी संनिकट थोड़ा,
देखा एक व्याध तीर को छोडा-
लगा करने वह दारुण क्रंदन।।
जाग उठी महर्षि की करुणा,
उठा हाथ फिर दिए उलाहना,
हाय व्याध!कर दिया दुर्घटना-
होगा तेरा अब निंदित जीवन।।
मुंह फेर जब बढ़ गए आगे,
कलपा खुद को मान अभागे,
गहा चरण वह भागे-भागे-
मुझे ऐसा न कहें भगवन।।
आपके मार्ग का मैं नहीं बाधा,
है जाति कर्म धर्म ही व्याधा,
इसी लिए तो मैं यह लक्ष साधा-
मान निज कर्म अकिंचन।।
इस घटना को कर-कर याद,
उपजा ऋषि को घोर विषाद,
कैसा है यह अतिनिंद्य निषाद-
छिन लिया मन भावन-पावन।।
इसी दुख से प्रकटी थी शारद,
मुनि को ये बात बताए नारद,
बने ऋषि तब ज्ञान विसारद-
रचे राम चरित अति पावन।।
अमर कथा है वाल्मीकि की।
"मिश्र अणु" की कीर्ति नीकी।।
वलिदाद अरवल (बिहार)८०४४०२.
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