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"मगही-धारा"

"मगही-धारा"

कूदइत हे फानइत हे
मउगा बिलार,
चूहा औ चुटरी से
जाइत हे हार।
म्याऊँ म्याऊँ करके
हे पिटइत कपार,
मूसमार नाम लेकिन
हे दंतचिहार,
बिलाइती कुत्ता से
हे एकरा प्यार,
देख के स्वदेशियन के
बन गेल सियार।
टपक हई मुँहवां से
दिन-रात लार,
हँसी उड़ाव हई
चूहा परिवार।
हाथ-गोड़ मारइत हे
हो के लाचार,
मौसी चिढाव हई
कह के कुँवार।
रजनीकांत।
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