जयंती प्रेमचंद की
आया है एकतीस जुलाई है घड़ी आनंद की ।
आइये ! मनाइये जयंती प्रेमचंद की ।।
धनपत धनहीन थे , मुंशी जी पराधीन थे ।
कलम के सिपाही लिखने में स्वाधीन थे ।।
भूलकर भी अपनी सब बातें दुख-दंद की ।
आइये ! मनाइये जयंती प्रेमचंद की ।।
कालजयी रचना ने जीत लिया काल को ।
शत-शत श्रद्धांजलि है लमही के लाल को ।।
जूझते अभाव में आवाज थी स्वछंद की ।
आइये ! मनाइये जयंती प्रेमचंद की ।।
कर्बला व निर्मला गोदान गवन धन्य है ।
रंगभूमि कर्मभूमि रचना अनन्य है ।।
शोजे वतन ने राष्ट्रभक्ति भावना बुलन्द की ।
आइये ! मनाइये जयंती प्रेमचंद की ।।
आज भी उनकी तरफ दुनिया गड़ाये नैन है ।
जिनकी अमर कृतियाँ देती हमें चितचैन है ।।
सबकुछ सपाट है जगह न लंद-फंद की ।
आइये ! मनाइये जयंती प्रेमचंद की ।।
चितरंजन 'चैनपुरा' , जहानाबाद, बिहार
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