माथा पकड़ले हे सोच के किसनवाँ,
सूखे लगल खेत में जमलका बीहनवाँ।
लग गेलइ केकर नजरिया
कइसे रोपनी रोपायेत?
आशा निराशा में बीतल महिनवाँ,
खेतवा के आरी बहउली पसेनवाँ।
खेतिहर के मन के दरदिया
कइसे रोपनी रोपायेत?
रात दिन मिलके हम इन्दर मनउली,
खीर आउ पूड़ी परसादी चढ़उली।
सूखल हे अहरा पोखरिया
कइसे रोपनी रोपायेत?
उजर उजर बदरी से जीव घबरायेल,
भीषण ई गरमी में मन मुरझायेल।
केकरा बतावे किसनिया
कइसे रोपनी रोपायेत?
रजनीकांत।
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