जीवन जीवंत बनाओ
दिशाहीनता पर गुमान को छोड़, धरा पर आओ।
उग्रवाद,आतंकवाद का मत अब साथ निभाओ।।
विद्रूपता राजनीति में,
तूने अब तक प्रस्तुत की है।
रख ताक पर राष्ट्रहित,
कितना अपमान पिया है।।
अर्थनीति से राजनीति को,
जी भर तूने पिटवाया।
नहीं किसी ने पूछा तुमसे,
बदले में तूने क्या पाया।।
डाल कब्र में संगठन को
सत्ता की कर घृणित राजनीति ।
विपुल ख्याति, गौरव का,
तूने अपना इतिहास भुलाया।।
वक्त है "विवेक" से पूछो,
अब तो कदम बढ़ाओ ।
सही राह अपना कर तू
जीवन को जीवंत बनाओ ।।
डॉ. विवेकानंद मिश्रा,
. डॉक्टर विवेकानंद पथ गोल बगीचा,गया (बिहार)।।
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