Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

विवाह में अत्यधिक देरी ; चिंतनीय विषय

विवाह में अत्यधिक देरी ; चिंतनीय विषय

विवाह एक संस्थान है। यह मानव-समाज की अत्यंत महत्वपूर्ण  समाजशास्त्रीय प्रथा है। यह  सबसे छोटी 'समाज-निर्मात्री इकाई' अर्थात परिवार-का मूल है। यह मानव प्रजाति के सातत्य को बनाए रखने का प्रधान जीवशास्त्रीय माध्यम है। यह एक धार्मिक मान्यता प्राप्त मिलन भी है। इस संस्थान का सम्मान करना चाहिए ।देश- काल- परिस्थिति के अनुसार विवाह के लिए उपयुक्त उम्र का निर्धारण समाज व सरकार द्वारा होता रहा है। किंतु कभी अशिक्षा तो कभी अत्यधिक शिक्षा ने समाज व सरकार के बनाये नियमों का मज़ाक उड़ाया है।

विभिन्न कारणों से आज विवाह बहुत सारे अवरोधों को प्राप्त है। आज समाज जिन समस्याओं से गुज़र रहा है उनमें एक समस्या है  -  बच्चों की बढ़ती उम्र और उनका विवाह न होना । जी हाँ, यह एक विकट समस्या है। समाज के हर वर्ग में यह समस्या है । गाँव मे भी यह समस्या है और शहर में भी। इनके कारण भले ही अलग-अलग हो सकते हैं किंतु यह समस्या  हर ओर व्याप्त है । कहीं 36 वर्ष की लड़कियाँ कुंवारी बैठी हैं तो कहीं 40 वर्ष के लड़के कुंवारे बैठे हैं ।

विवाह में विलंब के दुष्प्रभाव बहुत ज़्यादा होते हैं। 'उदयपुर',राजस्थान" से 'वेदान्ता' के चिकित्सकीय सलाहकार डॉ चंद्रशेखर मिश्रा ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि..." ऐसे मरीजों की संख्या आजकल बढ़ती जा रही है जिनका विवाह देर से होता है।।देर से विवाह होने के कारण हार्मोन्स में परिवर्तन, व्यभिचार का बढ़ना, 30 वर्ष के वाद लड़कियों में प्रजनन क्षमता की कमी, परिवार को समय न दे पाने के कारण लड़ाई-झगड़ा और तलाक होना, मानसिक तनाव से ग्रसित हो कर अपंग हो जाना या  आत्म-हत्या तक कर लेना-- इस तरह की समस्याएँ देखने को मिल रही हैं।''

यह समस्या समाज मे पहले भी थी , किन्तु तब कारण कुछ और होते थे। संचार व यातायात के साधन कम या नगण्य होने के कारण दूर के रिश्ते नहीं होते थे और वरपक्ष के पास विकल्प सीमित होते थे । ऐसे में कई लोग अविवाहित रह जाते थे । कहीं कहीं तो सम्पत्ति में अधिक बंटवारा न हो, इस कारण से भी विवाह नही होने के समाचार सुने जाते थे।
 
किन्तु, आज जब कि इंटरनेट और सरपट यातायात का युग है , एक दूसरे तक की पहुँच बहुत आसान है। कुंडली प्राप्ति से लेकर फोटो प्राप्ति तक की (विवाह से सम्वन्धित) बातचीत फोन व व्हाटसअप पर ही निपट जाती है जिसके लिए पहले कन्यापक्ष को कईबार वरपक्ष के घर जाकर अनुनय- विनय करना पड़ता था। किन्तु, आज जब कि संचार-सम्प्रेषण बहुत सुगम हो गया है, ऐसे में भी बच्चों का विवाह समय से नही होना सभ्य समाज के लिए एक शोचनीय मुद्दा है।

आज स्थिति यह है कि मेडिकल की पढ़ाई करने वाले बच्चे मेडिको पार्टनर की चाह में उम्र के चौथे पांचवे दशक के करीब हैं । और जब मेडिको पार्टनर नही मिलती तो अन्य विकल्पों की ओर रूख करते हैं । तब तक इतनी देर हो चुकी होती है कि ...।  यही स्थिति इंजीनियर या अन्य हाई स्टेटस मैचिंग प्रोफेशन की चाह वालों की हो रही है। बैंगलोर से श्रीमती चंद्रा शर्मा जो बताती है कि विवाह में देरी कई बार अन्तर्जातीय विवाह के कारण या वजह भी बन जाती है। मनचाहे पात्र न मिलने से परेशान लोग ऐसा कदम भी उठा लेते हैं ।

इस समस्या के कारणों की बात करें तो कहीं-कहीं बच्चे जिम्मेदार है तो कहीं -कहीं अभिभावक । बच्चे कॅरियर को तरजीह देते हैं और अभिभावक उन्हें समझा नही पाते। ऐसे में बीच का रास्ता भी निकाला जा सकता है आसनसोल  से  श्री राघव प्रसाद पाण्डेय इस समस्या के हल के विषय मे कुछ सुझाव बताते हुए कहते हैं कि.. .. ''बहुओं को यदि शादी के बाद भी (ससुराल में) पढ़ने का मौका दिया जाय और लड़कों को भी  यह समझाया जाय कि  विवाह की एक उपयुक्त उम्र होती है,उसका सम्मान करो और नौकरी में मनोवांछित सफलता या इच्छित तरक्की नही मिलती है तो पहले शादी ही कर लो, तो हो सकता है कि कुछ हल निकले ।''

इसी सन्दर्भ में प्रयागराज से प्रोफेसर शैल कुमारी मिश्रा ने एक महत्वपूर्ण बात कही कि.."विवाह का मूल उद्देश्य है स्वस्थ संतति प्राप्त करना और स्वस्थ संतति पर निर्भर रहता है परिवार का सुखी रहना |विवाह का संबंध कैरियर से जोड़ना उचित नहीं है, कैरियर योग्यता, प्रतिभा और प्रयत्न से बनाया जा सकता है, किन्तु विवाह समय सापेक्ष है, विवाह का संबंध आने वाली पीढ़ियों से है, वंशपरंपरा से है| समय से विवाह होगा तो समय से संतान होगी और  तभी हम समय से सभी दायित्वों को पूरा कर सकेंगे, |  दादा दादी बनने का भी सुख प्राप्त कर पायेगें ।"

कहीं कहीं मनचाहे दहेज के कारण भी उम्र निकल रही है। दहेजप्रथा  विवाह के देरी का एक  प्रमुख कारण है। कहीं- कहीं तो यह भी देखने मे आता है कि पुत्रियों की आय पर निर्भर परिवार जानबूझ कर रिश्ते में शिथिलिता बरतते हैं ।

विवाह में बिलम्ब के कई कारणों में से एक इसका ज्योतिषीय पक्ष भी है। कई बार लोग कुंडली में दर्ज आदेशों को मानते हुए विवाह को टालते हैं । डालटेंगज के प्रख्यात ज्योतिषज्ञ पं विजयानन्द सरस्वती  एक बातचीत में बताते हैं कि मुख्य रूप से जन्म कुंडली, चंद्र कुंडली व सूर्य कुंडली में सप्तम भावगत राहु शनि या अष्टम भावगत शुक्र राहु या शनि के साथ हो और  बृहस्पति नीच राशि का हो कर बैठा हो तो विवाह में बाधा या विलंब होता है।

अतः अभिभावकों को चाहिए  कि अपनी संतानों के विवाह के विषय मे समय से सोचना शुरू करें । दहेज़ को ना कहें। रूप रंग के मामले में मानवीय रूख अपनाएँ । पात्र-चयन में व्यावहारिक दृष्टिकोण रखें ।जन्मकुंडली  के विषय मे थोड़ा लचीला बनें । यदि कोई ऐसी समस्या हो तो ज्योतिषीय समाधान के बारे में परामर्श लें। 

कोलकाता से पं बिमल मिश्र ज्योतिषीय उलझनों का समाधान बताते हुए कहते हैं ..."विवाह में विलंब होने पर दुर्गा सप्तशती में निहित पत्नीं मनोरमां देहि... का संपुट पाठ या सर्व मंगल मांगल्ये का संपुट या मातंगी प्रयोग लाभदाई होता है। तोपाज पुखराज धारण करना , मंगला गौरी की पूजा  करना, रामायण के गिरिजा पूजन प्रसंग का पाठ करना, कात्यायनी पूजा करना इत्यादि भी लाभदायक होता है।"

विवाह में देरी की प्रमुख वज़हों में से एक है मनोनुकूल पार्टनर का न मिलना ।अत्यधिक शिक्षित या हाई प्रोफाइल नौकरी तक पहुंचे युवाओं को भी ऐसी स्थिति से जूझना पड़ता है। चेन्नई से श्रीमती सरला शर्मा के अनुसार.. "ऐसे में युवाओं को भी अपने परिवार व समाज के प्रति  जिम्मेदारी समझनी चाहिए ।साथ ही, सामाजिक संस्थाओ को भी अपनी भूमिका महत्त्वपूर्ण देनी चाहिये ।"

जी हाँ ,सामाजिक संस्थाएँ  इस दिशा में परिवर्तनकारी मदद दे सकती हैं । वैवाहिक विवरणों (बॉयोडाटा) की सर्वसुलभता के लिए  राष्ट्रव्यापी अभियान चलाए जाने की आवश्यकता है । सामाजिक पत्र पत्रिकाओं में वैवाहिक विवरणों को स्थान दिया जाय । राँची से 'मगबन्धु (अखिल)' के सम्पादक डॉ सुधांशु शेखर मिश्र बताते है कि हम अपनी पत्रिका के प्रत्येक अंक में ऐसे विवरणों को स्थान देते हैं । अहमदाबाद से श्री रमेश शर्मा ने बताया कि वो  शाक. वैवाहिक संगम नामक  समूह के माध्यम से  वैवाहिक रिश्तों में सहयोग देने का काम कर रहे हैं । इसी प्रकार संस्था 'भास्कर,दिल्ली' कई अन्य संस्थाओं से तालमेल कर  एक 'पीडीएफ पत्रिका' निकालती है जिससे कि बच्चों के रिश्तों में मदद मिल सके।

विवाह यदि सही समय पर हो ,तो कई समस्याओं का अंत भी हो जाता है। विवाह में देरी के कारण जो बच्चे प्रेम विवाह या अन्तर्जातीय विवाह की ओर रूख करते है, उन्हें रोका जा सकता है।तो आइए हमसब मिलकर समाज को इस बारे में जागरूक करने का यत्न करें कि  बच्चों का विवाह सही समय पर करें । जय भास्कर। जय समाज ।

लेखक ::
बिबेका नन्द मिश्र
(लेक्चरर,दिल्ली प्रशासन)
ग्राम-बन्धुछपरा,बड़हरा, भोजपुर
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ