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फ़ाड़ रहे थे कागज

फ़ाड़ रहे थे कागज

फ़ाड़ रहे थे कागज, कल जो संसद में,
तृण मूल से उखाड़, अब विनाश करो।
कब तक अपमानों से रहे, व्यथित संसद,
अध्यक्ष महोदय, अब कुछ उपचार करो।

बहुमत की सरकार, देश में बैठी है,
क्यों डरी, सहमी सहमी सी रहती है?
मर्यादा का चीरहरण, कब तक देखेंगे,
आओ कृष्ण, द्रोपदी आह भर कहती हैं।

मूल उखाड चाणक्य ने, जड में मट्ठा डाला,
राष्ट्र हित संकल्प, नन्द वंश निपटा डाला।
महाभारत का काल, साक्षी पुत्र मोह बना,
कृष्ण कृपा, अर्जुन के बाणों ने निपटा डाला।

समर क्षेत्र में, कौरव दल में पाप खड़ा था,
अहंकार अन्याय का ही, उनको आश्रय था।
धर्म युद्ध में पाण्डव, धर्म हित कृष्ण संग थे,
धृतराष्ट्र का पुत्र मोह, कुल का नाश बना था।

अ कीर्ति वर्द्धन
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