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रहे मुह बाये

रहे मुह बाये

प्रेमचन्द के 
पात्र अभी तक 
घूम रहे मुह बाये 

परिवर्तन का 
ढोल पीटते 
थके नहीं अभिनेता
कलयुग को भी 
बात-चीत में 
बता रहे हैं त्रेता 

झूठ बोल करके 
ही सबका
मन कब से बहलाये 

कहते तो हैं 
गाँव-गाँव में
प्रगति हुई है भारी
फिर क्यों 'होरी' का 
झोपड़िया में
रहना है जारी 

रात-रात भर 
नींद न आये
पटवारी हड़काये 

बोझ कर्ज का 
लदा पीठ पर
आँख दिखाये बनिया
मज़बूरी में 
मज़दूरी सँग
बेच रही तन 'धनिया' 

आँसू पी-पीकर 
जीवन का
दर्द स्वयं सहलाये 

कागज़ पर ही 
दौड़ रही है
खूब योजना उजला
'घूरू' के घर 
कई दिनों से 
चूल्हा नहीं जला 

कैसे पाले पेट 
सभी का 
कहाँ जाय मर जाये 

प्रेमचन्द के पात्र 
अभी तक 
घूम रहे मुह बाये     
         ००
~जयराम जय 
'पर्णिका'बी-11/1,कृष्ण विहार,आवास विकास,कल्याणपुर कानपुर -208017 (उ०प्र०)
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