जाने कितने ठग लुटेरे, भेष बदलकर घूमते,
जाने कितने आतंकी, भेष बदलकर घूमते?
कोई साधू रूप धरे, कोई जननायक बनता,
जाने कितने शिक्षक का, भेष बदलकर घूमते?
कितने मन्दिर मस्जिद बैठे, कितने जाकर चर्च छिपे,
कितने फादर और नन बने, कितने चोला बदल छिपे?
कोई चादर हरी ओढकर, कोई भगवा सफेद पहनकर,
कितने धर्म गुरू हो गये हैं, कितने धर्म को बदल छिपे?
कुछ का लक्ष्य देखा केवल, झूठ फरेब और बेईमानी,
कुछ का लक्ष्य देखा केवल, धर्म की पहचान बढ़ानी।
मिलें बहत्तर हूरें या फिर, जर जोरू सामान का लोभ,
कुछ का लक्ष्य देखा केवल, ताकत से सत्ता पानी।
अ कीर्ति वर्द्धन
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