दिल ये पगला
मौसम बदला,
मिजाज बदला,
पर ये पगला,
दिल न बदला।
मैने कहा जा घूम ले नगरिया में,
खो जा तू फलक की बदरिया में,
गिर रहा है नीर,
करके बादलों पर हमला,
पर ये पगला,
दिल न बदला।
मैने कहा,
अरे साथ ले जाता छाता,
बाहर जाकर, जरा, सब्जी ले आता,
प्याज-पकौड़ी बेसन की तलकर,
हौले-हौले गरम-गरम खा जाता,
पर दिल ए पत्थर ,
बिल्कुल न पिघला,
और ये पगला,
दिल फिर भी न बदला।
अब मैं हारा,
ना बूझूगा हाल तुम्हारा,
तब दिल की धडकन बढ़ गई दोबारा,
मैनें अपने हमनसी को बुलाया,
फिर उनने दिल से दिल को बहलाया,
कुछ गुस्से से,
कुछ नरमी से फरमाया,
दिल तब वापिस रास्ते में आया,
अब मौसम भी बदला,
दिल भी बदला,
जिंदगी के कारवां का
फिर से चल पड़ा सिलसिला।
राजेश लखेरा, जबलपुर।
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