'महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय' की ओर से 'आनंदप्राप्ति'
विषय पर शोध-प्रबंध श्रीलंका के अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक सम्मेलन में प्रस्तुत !
नामजप और स्वभावदोष निर्मूलन से आनंदप्राप्ति संभव !
निरंतर सर्वोच्च सुख (जिसे आनंद कहते हैं) उसे अनुभव करने की कामना ही मनुष्य के प्रत्येक कार्य की प्रेरणा है । फिर भी संपूर्ण मानवजाति जिसे पाने के लिए सदैव उतावली रहती है, उस 'आनंदप्राप्ति' का विषय आजकल के विद्यालयों और महाविद्यालयों में नहीं पढाया जाता । नामजप और स्वभावदोष-अहं निर्मूलन को दैनिक आचरण में लाकर, सर्वोच्च और स्थायी सुख, अर्थात आनंद मिल सकता है, यह विचार महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की पू. (श्रीमती) भावना शिंदेजी ने व्यक्त किया । वे 'थर्ड वर्ल्ड कॉन्फ्रेन्स ऑन चिल्ड्रेन एंड यूथ 2021(CCY 2021): दी वर्च्युल कॉन्फ्रेन्स' विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बोल रही थीं । यह परिषद 'दी इंटरनैशनल इन्स्टिट्यूट ऑफ नॉलेज मैनेजमेंट (TIIKM) श्रीलंका' द्वारा आयोजित की गई थी । पू. (श्रीमती) भावना शिंदेजी ने इस परिषद में 'तनावपूर्ण जगत् में आनंदप्राप्ति के उपाय' नामक शोधप्रबंध प्रस्तुत किया । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी इस शोधप्रबंध के मुख्य लेखक तथा डॉ. (श्रीमती) नंदिनी सामंत सहलेखिका हैं ।
महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा वैज्ञानिक परिषद में प्रस्तुत किया गया यह 75 वां प्रस्तुतीकरण था । इससे पूर्व विश्वविद्यालय द्वारा 15 राष्ट्रीय और 60 अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषदों में शोधनिबंध प्रस्तुत किए गए हैं । इनमें से 5 अंतरराष्ट्रीय परिषदों में विश्वविद्यालय को 'सर्वोत्कृष्ट शोधनिबंध' पुरस्कार प्राप्त हुआ है ।
पू. (श्रीमती) भावना शिंदेजी ने आगे कहा, जीवन की समस्याओं से हम दुःखी होते हैं । हमारे जीवन की समस्याओं के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक ये 3 मूल कारण होते हैं । जीवन की 50 प्रतिशत से अधिक समस्याएं आध्यात्मिक कारणों से होती हैं, जो प्रायः शारीरिक अथवा मानसिक समस्याओं के रूप में प्रकट होती हैं । प्रारब्ध (भाग्य), पूर्वजों के अतृप्त लिंगदेह और अन्य सूक्ष्म स्वरूप की अनिष्ट शक्तियां, ये ३ प्रमुख आध्यात्मिक कारण हैं । जब किसी समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक होता है, तब उपाय भी आध्यात्मिक करने पडते हैं । आध्यात्मिक उपाय से शारीरिक और मानसिक समस्याएं भी दूर होने में सहायता होती है । ऐसा तब होता है, जब इन समस्याओं का मूल कारण प्रायः आध्यात्मिक होता है ।
अंत में पू. (श्रीमती) भावना शिंदेजी ने आनंदप्राप्ति के लिए निम्नांकित प्रमुख प्रयास बताए :
1. नामजप : प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने धर्मानुसार नामजप कर सकता है । वर्तमान समय में 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय', यह एक अत्यंत प्रभावी नामजप है । पू. (श्रीमती) भावना शिंदेजी ने नामजप के सकारात्मक प्रभाव मापने के लिए किए गए एक प्रयोग के विषय में बताया । 'जी.डी.वी. बायोवेल' नामक वैज्ञानिक उपकरण के माध्यम से व्यक्ति के कुंडलिनी चक्रों का मापन किया जाता है । इस प्रयोग में एक व्यक्ति के कुंडलिनी चक्र केवल 40 मिनट 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' यह जप करने पर अपने-अपने मूल स्थान पर और एक रेखा में आ गए, ऐसा दिखाई दिया । कुंडलिनी चक्रों की यह स्थिति दर्शाती है कि उस व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्थिति अधिक अच्छी है ।
2. स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया : मन पर बने स्वभावदोषों के संस्कार नष्ट करने के लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने यह प्रक्रिया विकसित की है । इस प्रक्रिया के विषय में किए गए एक सर्वेक्षण में 50 साधकों ने सहभाग लिया था । उसमें 90 प्रतिशत साधक व्यवसायी थे । उन्होंने बताया कि हमें इन स्वभावदोषों को 50 से 80 प्रतिशत घटाने के लिए लगभग 2 वर्ष 5 महीने लगे थे । संबंधों में और कार्यक्षमता में बहुत सुधार हुआ है, ऐसा 73 प्रतिशत साधकों ने बताया, तो केवल कार्यक्षमता बढी है, ऐसा 77 प्रतिशत साधकों ने बताया ।दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com
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