"यह लोकतंत्र ये राजनीति मेरे काम की नहीं"
देश में इस समय राजनीति के गिरे हुए और घृणास्पद स्वरूप को देखकर देश के प्रति गंभीर लोग बहुत अधिक चिंतित हैं। कांग्रेस ने अपने शासनकाल में जिन अलोकतांत्रिक मूल्यों और कुसंस्कारों का बीजारोपण किया था वह अब फलीभूत हो रहे होते दिखाई दे रहे हैं। दुर्भाग्य का विषय है कि कांग्रेस ने जिन पापों का बीजारोपण किया था वह अब विष वृक्ष बन रहे हैं। इस विश्व वृक्ष की जानकारी हमें उस समय मिली जब जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने नए मंत्रियों का परिचय करा रहे थे उस समय कांग्रेस के अप्रत्याशित शोर-शराबे और मंत्रियों का परिचय न कराने देने की उसकी प्रवृत्ति ने दिखा दिया कि लोकतंत्र का हत्यारा कौन है ?
वैसे अबसे पहले कांग्रेस के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा भी 2004 में जब अपने मंत्रियों का परिचय कराया गया था तो उस समय भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में उनकी पार्टी के सदस्यों ने भी परिचय के समय शोर मचाया था और सदन का बहिष्कार कर दिया था । उस समय भाजपा ने जो कुछ किया था, वह भी गलत था। क्योंकि किसी भी प्रधानमंत्री के द्वारा अपने मंत्रियों का परिचय कराया जाना उसका संवैधानिक कर्तव्य है। जिसे भाजपा ने पूरा नहीं होने दिया। इसके उपरांत भी भाजपा का उस समय का विरोध इस सीमा तक उचित था कि प्रधानमंत्री जिन मंत्रियों का परिचय करा रहे थे उनमें से एक लालू प्रसाद यादव भी थे । जिन पर उस समय भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थे । गंभीर प्रकृति के उन आरोपों के चलते ही लालू का विरोध भाजपा कर रही थी। ऐसे मंत्रियों का विरोध किया जाना भी तभी उचित माना जाता जब परिचय के पश्चात की होने वाली संसदीय चर्चा में ऐसा किया जाता।
अब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मंत्रियों का परिचय करा रहे थे तो उनमें कोई दागी तो नहीं था परंतु कांग्रेस ने सारे विपक्ष को अपने साथ लेकर पुरानी घटना का प्रतिशोध लिया। जिसे किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं कहा जा सकता। यह संसद में लोकतंत्र को मजबूती देने वाला कदम नहीं है बल्कि यह तो लोकतंत्र की हत्या है।
हम लोकतंत्र के भव्य मंदिर में लोकतांत्रिक मूल्यों के दीपक नहीं जला पाए बल्कि अपने कुकृत्यों से लोकतंत्र के मंदिर को ही घुप्प अंधेरे में तब्दील कर दिया है। जिसमें कांग्रेस के द्वारा अपने शासनकाल में लोकतांत्रिक संस्थानों, संस्थाओं और मूल्यों का जिस प्रकार दोहन और शोषण किया गया उसने शासन और प्रशासन दोनों को ही लोकतंत्र की उपेक्षा करके चलने का कुसंस्कार प्रदान कर दिया। आज विपक्ष में रहकर भी कांग्रेस देशहित में निर्णय न लेकर अपने 'पप्पू' के द्वारा ट्रैक्टर परेड में अपने राजनीतिक चिंतन के फूहड़पन को प्रदर्शित कर रही है। जब देश की संसद का सत्र चल रहा हो, तब विपक्ष का बड़ा नेता ऐसे कार्यों में संसद के बाहर लगा हुआ दिखाई दे तो यह भी लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ा काला धब्बा है।
देश में राजनीतिक लोगों के गिरे हुए आचरण को देखकर कभी-कभी तो यह लगता है कि 'यह लोकतंत्र - यह राजनीति मेरे काम की नहीं'।
राजनीति अपने धर्म को भूल गई है। संसद जाम करना और सरकार के विधायी कार्यों में व्यवधान डालना देश के विपक्ष की प्रवृत्ति बन चुकी है। यह बड़ी अजीब बात है कि संसद चलने नहीं देंगे, विधायी कार्य होने नहीं देंगे ,देश को आगे बढ़ने के लिए कोई रचनात्मक सहयोग नहीं करेंगे और फिर कहेंगे कि सरकार कुछ कर नहीं रही है।
सरकार की अकर्मण्यता और तानाशाही प्रवृत्ति पर चोट करना विपक्ष का विशेषाधिकार है। पर यह विशेष अधिकार तभी प्रयुक्त होता है जब सरकार अकर्मण्य और तानाशाह बनी दिखाई दे रही हो । यदि सरकार भ्रष्ट और रिश्वतखोर लोगों के या देश के विरुद्ध काम कर रहे लोगों के विरुद्ध निर्णय लेती है तो यह सरकार की अकर्मण्यता और तानाशाही नहीं है, वास्तव में सरकार बनाई ही इसलिए जाती है कि वह ऐसे लोगों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करे जो भ्रष्ट, रिश्वतखोर और देश के विरुद्ध काम करने वाले हैं।
वैसे नरेंद्र मोदी की भ्रष्ट और रिश्वतखोर लोगों के विरुद्ध कार्यवाही करने की प्रवृत्ति की सराहना अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने भी कर दी है। उन्होंने यह मान लिया है कि प्रधानमंत्री मोदी से वही लोग डरेंगे जो रिश्वतखोर और भ्रष्ट हैं। इसका अर्थ है कि रिश्वतखोर और भ्रष्ट लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भयभीत रहते हैं। जिसका अर्थ यह भी हुआ कि नरेंद्र मोदी स्वयं न केवल कठोर हैं बल्कि भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी से भी दूर है। सचमुच भाजपा को सत्ता में बनाए रखने में कांग्रेस के इस नेता का बड़ा भारी योगदान है। वह जब तक अपनी इसी प्रकार की 'बुद्धिमत्ता पूर्ण वाकशक्ति' का परिचय देते रहेंगे तब तक भाजपा को सत्ता से कोई हिला भी नहीं पाएगा।
इस समय एक और खतरनाक प्रवृत्ति देखी जा रही है कि कांग्रेस के लोग संसद को जाम करके अपनी समस्याओं को या तो टीवी चैनलों के माध्यम से उठा रहे हैं या फिर दूसरे मंचों पर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। जबकि होना यह चाहिए था कि देश की संसद के भीतर रहकर वह सरकार की नीतियों की आलोचना करते। शोर शराबा न करके संसद को ढंग से चलने देते और जितना भी कुछ बोलना है, उतना बोलते। यह तब और भी अधिक आवश्यक हो जाता है जब सरकार ने स्वयं ही यह कह दिया है कि वह प्रत्येक मुद्दे पर बहस करने के लिए तैयार है। यदि इसके बावजूद कांग्रेस संसद में बहस से भाग रही है तो कहीं ना कहीं कांग्रेस खुद कमजोर है। लोकतंत्र ने जन समस्याओं के समाधान के लिए जिस मंच अर्थात संसद का निर्माण किया है उसे छोड़कर भागना भी लोकतंत्र की हत्या है।
अपनी समस्याओं को जनता के सामने दूसरे मंचों पर जाकर उठाना लोकतंत्र का संस्कार नहीं। माना कि प्रेस लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है पर इसके उपरांत भी जब संसद चल रही हो तो किसी चैनल पर जाकर या किसी जनसभा में जाकर या लोगों के बीच जाकर अपनी समस्या को उठाना लोकतांत्रिक परंपराओं के विपरीत है। लोकतंत्र में प्रेस का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है लेकिन प्रेस कभी भी संसद नहीं हो सकती- यह बात भी ध्यान रखने योग्य है , क्योंकि प्रत्येक समस्या का समाधान संसद तो दे सकती है प्रेस नहीं।
वास्तव में इस समय आवश्यकता इस बात की है कि जो नेता या पार्टी संसद को चलने में व्यवधान डाल रहे हैं उनके विरुद्ध कार्यवाही होनी चाहिए। ऐसे प्रत्येक सांसद का वेतन और भत्ता काट लेना चाहिए जो संसद की कार्यवाही को विधिवत चलने में बाधा उत्पन्न कर रहा हो। लोकतंत्र में विरोध करना उचित है पर लोकतंत्र को बाधित करना पाप है। लोकतंत्र के अपने मौलिक अधिकार अर्थात विरोध से यदि विपक्ष भटक कर बाधा पहुंचाने की स्थिति में आ गया है तो उसके इस अमर्यादित आचरण के विरुद्ध न्यायालयों को भी संज्ञान लेना चाहिए। जो राजनीतिक पार्टियां देश विरोधी गतिविधियों में लगी हुई हैं या देश की दुश्मन ताकतों को अपना सहयोग और समर्थन दे रही हैं उनकी राजनीतिक मान्यता समाप्त होनी चाहिए। लोकतंत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए इस समय राजनीतिक आचार संहिता लागू करने की भी महती आवश्यकता है। जिस का कठोरता से पालन होना चाहिए। देश के लोग अपने जनप्रतिनिधियों को कौओं की तरह लड़ने के लिए संसद में नहीं भेजते हैं बल्कि देश आगे बढ़े और देश के विधायी कार्य विधिवत चर्चा के उपरांत संपन्न हों, इसके लिए उन्हें भेजा जाता है। देश के लोगों को अपने जनप्रतिनिधियों से अपेक्षा है कि वे राजधर्म का पालन करें और कौवा धर्म को त्याग दें।
देश के लोगों के खून पसीने की कमाई के ₹15 करोड़ पार्लियामेंट की कार्यवाही पर हम प्रतिदिन खर्च करते हैं। उन्हें व्यर्थ में ही खर्च कराने में यदि विपक्ष अपनी भूमिका निभा रहा है तो उसे यह भी पता होना चाहिए कि जनता अपनी एक-एक पाई का हिसाब उससे लेगी। माना कि संसद की कार्यवाही को चलाने का विशेष दायित्व संसदीय कार्य मंत्री के पास होता है परंतु उसमें सहयोग देकर उसे सुचारू और सुव्यवस्थित ढंग से चलाने में सहायता करना विपक्ष का भी काम है। केवल संसदीय कार्य मंत्री की असफलता या सरकार की निष्क्रियता कहकर ही संसद की वर्तमान स्थिति को उपेक्षित नहीं किया जा सकता।
समय बहुत कुछ सोचने और बहुत कुछ करने का आ गया है। देश के जिम्मेदार नागरिक और मतदाताओं को भी समझ लेना चाहिए कि लोकतंत्र की धज्जियां कौन उड़ा रहा है और कौन लोकतांत्रिक मर्यादाओं का पालन कर रहा है ? 2024 दूर नहीं है। एक-एक 'गद्दार' और लोकतंत्र के 'हत्यारे' को कड़ा पाठ पढ़ाया जाना चाहिए। हर एक 'गद्दार' की हर एक गतिविधि पर जनता बारीकी से ध्यान दे और समय आने पर उसका हिसाब पाक साफ कर दे। भारत में लोकतंत्र की परिपक्वता के लिए ऐसा किया जाना बहुत आवश्यक है।
डॉ राकेश कुमार आर्यसंपादक : उगता भारत
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