बोल लेखनी कुछ तो बोल
बोल लेखनी कुछ तो बोल
बरसों से दबी परतों को
मेरे शब्दों मे पिरोकर
मेरे अंतर्मन के गुब्बारों को
खूबसूरत शब्दों में पिरो कर
तू ही बोल
मेरी लेखनी तू ही बोल।
मेरी बंद परतों के
अब तू ही दरवाजे खोल
बोल जो मैं मुख से ना पाई
स्वयं की चाहत,
प्यार ,मोहब्बत
खुद की पीड़ा
अंतर्मन का सुख दुख
मेरी लेखनी तू ही बोल
बोल लेखनीअब तू तो बोल।
मेरी दबी इच्छाओ
मेरी चाहतों
मेरा सम्मान मेरा अपमान
मेरे जज्बात
मेरे नैनों की भाषा
मेरी मौन की भाषाओं का
अब रहस्य तू ही खोल
तू ही अब सबको समझा
मेरी लेखनी अब तू ही बोल।
धन्यवाद
अंशु तिवारी पटना
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