ब्राह्मण विद्वेष का विष : सद्गति
---:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र 'अणु'
एक दिन पंडित जी के द्वार
पहुंचा दुखी चमार
अपनी बेटी की शादी का
वह करवाना चाहता था विचार
पंडित जी बाहर आए
दुखी को देखकर गुर्राए
फिर बोले-- क्या है काम?
देखकर दुखी दूर से हीं
किया था दंड प्रणाम
अपना माथा झुकाया
और आने का कारण बताया
ठीक है कहकर पंडित जी
उसे पहले काम में लगाया
पहले खूब झाड़ू लगवाया
फिर भूंसा ढुलवाया
गांठ वाली लकड़ी देकर
फाडने का हुक्म सुनाया
लकड़ी नहीं फटी
और एक दुर्घटना घटी
पंडित के दरवाजे पर
भुखा प्यासा मर गया दुखी
यही है शायद दलितों की नियति
बता गए 'प्रेमचद' कह सद्गति
ऐसा कहां कब होते हैं पंडित?
जो ऐसी कहानी गढ़ी तेरी मति
ऐसा नहीं रहा है भारतीय समाज
जो तज दिया हो सब लोक लाज
विश्वबन्धुत्व रही है हमारी रीति
नकि ये प्रगतिशीलता की सद्गति
जिसे अच्छा लगता है ईदगाह
है संकुचित वह और निगाह
है झूठी प्रगतिशीलता नियति।
सामाजिक विद्वेष है सद्गति।।
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वलिदाद,अरवल(बिहार)८०४४०२
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