कब से छोड़ोगे गद्दारी
राष्ट्रहित के लिए समर्थन,
कब और कैसे करोगे तुम।
कुछ तो शर्म करो, सोचो,
कब छोड़ोगे गद्दारी ।।
क्या सत्ताभोग परिवार वाद
के लिए जन्मे हो और मरोगे।
या भारत मां के साथ छलावा
करने पर भी नहीं डरोगे।।
जन्म लिए हो इस धरती पर,
भार बने कब तक रहोगे।
जो-जो भारत के दुश्मन हैं,
कब तक उनका गले लगोगे।।
धन, दौलत, पद, बड़ी प्रतिष्ठा,
क्या-क्या न दिया तुम्हें भारत ने।
बदले में तूने खंजर घोंपा,
"क्या झूठ है ?" विवेक"से बोलोगे।।
गांधी जी के सपनों को क्या
उल्टा कर दिखलाओगे।
अहिंसा को दफना कर
क्या हिंसा गले लगाओगे।।
कुत्सित विचार, व्यभिचार की
क्य खेती खूब कराओगे ।
तुम रामराज लाने वाले,
क्या रावण से हाथ मिलाओगे।।
अहिंसा में शांतिवाद था
राष्ट्र सृजन में नहीं भ्रांति थी।
क्या इसे गँवाकर, सच बोलो,
हिंसक क्रांति कराओगे ?
डॉ. विवेकानंद मिश्र।
डॉ. विवेकानंद पथ गोल बगीचा,गया(बिहार)।
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