अरे!ओ मगमिहिर
---:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र "अणु"
अरे!ओ मगमिहिर,
बीत.गया सुदीन तेरा-
छा रहा तिमिर।।
पहले.वाली बात भुल,
अभी को कर.ले कबूल
सुख गया है मूल समूल-
कैसे खिलेगा फूल फिर।।
जो कुछ रहा इतिहास तेरा,
उससे सबने है.मुंह फेरा,
ये जेठ का तपन पवन है-
है सिमट गया शिशिर।।
पूर्व में भले थे अग्रदूत,
पर आज तुम हुए अछूत,
सब मिट रहा प्रतीक चिह्न-
कैसे धरे हो आज धीर।।
तुम मिटा दिए हो स्वाभिमान,
और हो खोजते खूब मान-दान,
कौन पुछता है अब-
किस वंश के हो सुवीर।।
त्याग कर के शास्त्र-शस्त्र,
हो रहे हो आज त्रस्त,
जो धार ले कृपाण- ज्ञान-
झुकेगा फिर चरण में शीर।।
तुम त्रिकाल तेज हो,
क्यों बने हुए निस्तेज हो
स्वयं को जगा ले एक बार-
खींच दे अमिट लकीर।।
'मिश्रअणु' है गा रहा,
सोए को है जगा रहा,
कर एक बार शंखनाद-
अरे!अजेय परमवीर।।
वलिदाद अरवल (बिहार)804402.
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