हद है
--:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र "अणु"
एकदम हद है
पहले अपनत्व दिखाना
बाद में उंगली उठाना
फिर मिलने वालों को-
बस खामियां गीनाना
अरे आप नहीं जान रहे हैं
मुझे सब पता है
उसका कितना बड़ा कद है।।
एकदम हद है।।
कहना मैं त्यागी हूं दानी हूं,
हां थोड़ा बहुत अभिमानी हूं,
वह तो पक्का फेटवाल है-
जबकि मैं तो खानदानी हूं,
वह सारे फसाद का जद है।।
एकदम हद है।।
उसे कुछ नहीं आता है,
बस बड़ा कहलाता है,
अपने साथ रखकर लोग
आज खुद पछताता है
उसकी सारी बातें जदबद है।।
एकदम हद है।।
उसका स्वभाव अराजक है,
अपने समाज का विभाजक है,
जो खुद के लिए जीता है वह-
बड़ा हीं दुखदायक है,
उसकी आंखों में बसा मद है।।
एकदम हद है।।
बस लिखता है बड़ा नाम,
न कुछ धंधा है न काम
बडबोला है, उड़न खटोला है
न कुछ हासिल हुआ उसे मुकाम,
सब से कहता मेरे पास पद है।
एकदम हद है।।
एक जलनखोर,
मचा रहा है शोर
ये निकम्मा है यार
बाकि के साथी चोर
और लुट भी बेहद है।
एकदम हद है।।
बनता है बड़ा लिखाड,
फैलाकर अपना जुगाड
और हर जगह हर समय
करता है अक्षरों से खिलवाड़,
पढ़कर कहो..गद्य है या पद्य है।
एकदम हद है।।
वलिदाद अरवल (बिहार)८०४४०२.
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