भोर में ईश- स्मरण
जब भोर हुई तो चहक-चहक
पंछी कुछ मीठे गाते हैं
हे जग के सिरजनहार प्रभो,
तब स्मरण तुम्हीं के आते हैं।
जब दुग्धधार के मोहक सुर
कानों को खूब लुभाते हैं।
गौएँ रंभाती हैं क्षण-क्षण
बछड़े पीछे लग जाते हैं।
हे जग के ....
सूरज की लाली खिली-खिली
पूरब में रंग चढ़ाती है,
पेड़ों के पत्ते डोल-डोल
मधुमय संगीत सुनाते हैं।
हे जग के....
मेघों के काले-उजले दल
नैया जैसे पानी के बल,
तैरते दूर गगन में जब
तब मनोवेग मिल जाते हैं।
हे जग के....
घंटी की टुन-टुन मिश्री सी
कानों में घोल रिझाती हैं।
चरवाहे गौवों को हाँके
जब मैदानों को जाते हैं ।
हे जग के...
( एक पुरानी विस्मृत रचना की
प्रतिकृति )
राधा मोहन मिश्र माधव
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