झाड़ रहे हैं पल्ला
बेंच रहे हैं
सपने कब से
मचा-मचाके हल्ला
देखो कैसा
खेल चल रहा
उनका खुल्लम-खुल्ला
आसमान के
चाँद सितारे
धरती पर लायेंगे
बिजली की
परवाह नहीं
सूरज नया उगायेंगे
चाहे कोई
उनको कहता
फिरता रहे निठल्ला
उत्तरदायी
गर्म मुट्ठियाँ
हमको भरमाती हैं
सिर्फ हवा में
बातें करतीं
मन को बहलातीं हैं
बात-बात पर
चउवे-छक्के
घुमा रहे हैं बल्ला
भटक रही
दर-दर बेकारी
माथे पर बल डाले
हाँक रहे बस
लम्बी चौड़ी
वादे करने वाले
जुर्म गरीबी
बेकारी से
झाड़ रहे हैं पल्ला
पर्णकुटी की
छाँव छोड़कर
पडे़ कहाँ हो भाई
ये मृगतृष्णा
सिर्फ छलावा
खडे़ जहाँ हो भाई
कठिन समझ
पाना है इसको
ये चालाक मुहल्ला
गहरी होती जाती
निशि-दिन
माथे की रेखायें
अब तो
टूट रहीं हैं सबके
धीरज की सीमायें
कब तक सहन
करोगे लल्ला
उनके बने पुछल्ला
बेंच रहे हैं
सपने कब से
मचा-मचाके हल्ला
देखो कैसा
खेल चल रहा
उनका खुल्लम-खुल्ला
*
~जयराम जय
'पर्णिका' बी-11/1,कृष्ण विहार,आवास विकास,
कल्याणपुर कानपुर-208017(उ.प्र.)
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com