आओ कभी तुम मेरे शहर में
आओ कभी तुम मेरे शहर में,
आकर देखो तुम मेरा हाल,
आओगे तो कुछ खुशी मिलेगी,
कुछ देखकर होगा बुरा हाल।
रीत गयी इस शहर में मेरी जवानी,
खत्म हुयी वो मौज,वो रवानी,
आये थे जब गाँव से यहाँ पर,
थे हम बहुत मालामाल।
छूट गये अब सब रिश्ते नाते,
इस उम्र तक यहाँ आते- आते,
भूल गये जबसे गाँव की पगडंडी,
मेरी जिंदगी हुयी जंजाल।
इस शहर ने मेरा जीवन लील लिया,
इसने मेरी खुशियों को सील किया,
गाँव से बदतर हुआ मेरा जीवन,
तन-मन-धन से हम हुये कंगाल।
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अरविन्द अकेला
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