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साजन बिना सावन

साजन बिना सावन

पहली सखी
नयन नीर भरे मुख मलिन है
क्यों ठाड़ी हो सखी तुम द्वार
कारण कौन बताओ सखी री
हुई कांत से क्या तेरी तकरार
पटुका चुनरी बरसा में भींगी
सूखे बदन से निहारे अब हाड़
अश्रु बहाए नयन का काजल
धूमिल हुआ क्यों तेरा श्रृंगार
दूसरी सखी
दिलवर ने दिलघात कियो है
दर्द दिया मेरे हृदय को अपार
कद्र किए नही पावन प्रेम का
बसा लिए हैं वो अलग संसार
कैसे तजु प्रीतम को हे सखी
भाए ना अब ससुराल श्रृंगार
आस लगाई पिया मिलन का
द्वार खड़ी करूं नित इंतजार
सावन मास सुहावन है सखी
रिमझिम बरसे चहुदिश फुहार
तपीस दूर हुआ आज धरा का
मेरे साजन लौट ना आए द्वार
स्वरचित अनीता पाठक
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