मैं तो एक मोहरा हूँ
शतरंज का
बिसात सजी है
खिलाड़ी अपने हिसाब से
जब चाहे जैसे चाहे
इस्तेमाल कर ले
हार या जीत
इसकी परवाह नहीं
किसी को
वो तो सिर्फ खेलना जानता है
पिटना तो होता है सिर्फ
मोहरे को
सह मात के इस खेल में
चाल सीधी हो या
टेढ़ी
हाँथी घोड़े या सिपाही
सब पिटते ही हैं
सुल्तान तो तमाशा देखता रहता है
खेल के अंत तक।।
......मनोज कुमार मिश्र"पद्मनाभ"।
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