आहिस्ता
--:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र"अणु"
अब!
रिश्ते भी,
बना रहे हैं लोग-
देखकर अपनी आवश्यकता।
मैं नहीं?
समझ पाया,
लोगों की मानसिकता-
और तथाकथित विवसता।।
जरूर होगा!
कोई गुप्त बात,
या फिर दबी खुन्नस-
तभी तो पकडा है ये रास्ता।।
कहे कौन?
देखकर ऐसे मौन,
पर खुलता हीं है पोल-
देकर इधर-उधर का वास्ता।।
मन का गांठ!
नहीं रहने देता है,
किसीको भी अस्थिर-
पंगु बना देता है अच्छा खास्ता।।
सबकी सुनों!
सबको सुनाओ,
दूर मत जाने दो उसे-
कहो मुझे सुनना है तेरी दास्तां।।
मन की बात,
जन की बात-
फिर गले लगा लो आहिस्ता।।
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वलिदाद,अरवल(बिहार)८०४४०२.
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