फिर जितिया दो दिन
‘दो पाटन के बीच में बाकी बचा न कोय’ यह उक्ति इस बार भी चरितार्थ होगी।
28 सितम्बर 021 (मंगलवार) को सप्तमी तिथि अपराह्न 3.05 तक है।उपरान्त अष्टमी है।29 सितम्बर (बुधवार) को अष्टमी तिथि सायं 4.54 तक है।इसके बाद नवमी है।
दो मत हैं।एक के अनुसार चन्द्रोदय के समय अष्टमी आवश्यक तो दूसरे के अनुसार अष्टमी तिथि में सूर्योदय आवश्यक।पेंच फँसता यहीं।जब सूर्योदय में अष्टमी ग्राह्य हो तो मंगलवार को नहीं मिलेगी।यदि चन्द्रोदय के समय अष्टमी का ग्रहण हो तो बुधवार को नहीं मिलेगी।दोनों पक्षों की पुष्टि में शास्त्रोक्तियाँ हैं, इसलिए किसी को गलत नहीं ठहराया जा सकता।
मेरा मत 29 सितम्बर (बुधवार) के पक्ष में है।कारण है कि यह एक दिवसीय व्रत है।सूर्योदय- व्यापिनी अष्टमी के ग्रहण से 29 सितम्बर (बुधवार) को व्रत एवं 30 सितम्बर (गुरुवार) को सायं 6.24 तक नवमी रहने से सूर्योदय के बाद पारण करने में कोई बाधा नहीं।वहीं 28 सितम्बर (मंगलवार) को व्रत का ग्रहण करने पर 29 सितम्बर (बुधवार) सायं 4.54 के बाद पारण करना होगा।
विधानतः सूर्योदय से सूर्योदय तक ही एक दिवसीय व्रत होता है।यह सहज भी है।परन्तु सूर्योदय से तिथि- समाप्ति तक का व्रत कठिन है एवं अत्यारोपित भी।हमारी माताएँ-बहनें सूर्योदय-पूर्व सहरगही करती हैं।ऐसे में 28/29 सितम्बर (मंगलवार, अंग्रेजी मत से बुधवार ) को सूर्योदय- व्यापिनी सप्तमी मान व्रतारम्भ से पूर्व अन्न-जल ले सकती हैं और 29 सितम्बर (बुधवार) को सूर्योदय से 24 घंटे का उपवास कर सकती हैं।
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