दुर्गाजी का आना और जाना
दुर्गाजी कोई व्यक्ति नहीं; समस्त शक्तियों की समष्टि हैं।निराकार होकर या साकार होकर भी।फिर भी नवरात्र आता है तो लोग जानना चाहते हैं कि आने-जाने की सवारी क्या है? यह केवल शारद नवरात्र के लिए ही है, क्योंकि यह दुर्गोत्सव महापूजा के नाम से ख्यात है।
जगजननी के आगमन और प्रस्थान का निर्धारण दिनों के आधार पर है।तदनुरूप ही फल-निर्धारण भी है।इससे सम्बन्धित कुल चार श्लोक हैं, परन्तु किस शास्त्रीय ग्रन्थ के हैं; पता नहीं।तो भी; प्रचलन में हैं।श्लोकानुसार रवि-सोमवार को हाथी पर, मंगल-शनिवार को घोड़े पर, गुरु-शुक्रवार को दोला (झूले) पर तथा बुधवार को नाव पर आगमन माना गया है।आगमन का फल बताते कहा गया है कि हाथी पर आने से अच्छी वृष्टि, घोड़े पर आने से क्षत्रभंग (शासन-परिवर्तन), नाव पर आने से सर्वसिद्धि एवं दोला पर मरण व महामारी।
इसी तरह प्रस्थान के साधन और उनका फल भी बताया गया है।रवि-सोमवार को भैंसे पर गमन होता है, जो रोग-शोक की वृद्धि करता है।मंगल-शनिवार को मुर्गे पर होता है, जो विकलता प्रदान करता है।बुध-शुक्रवार को हाथी पर होता है, जो सुवृष्टि- कारक है।गुरुवार को डोली पर प्रस्थान होता है, जो सुखद-शुभद माना गया है।
प्रश्न है कि आगमन-प्रस्थान कहाँ से कहाँ तक? मिथिला-परम्परा नवरात्र के प्रथम दिन से विजया दशमी तक को मानती है।यानी; इसबार गुरुवार (7 अक्तूबर) से शुक्रवार (15 अक्तूबर) तक नवरात्र है तो गुरुवार को आगमन और विजया दशमी शुक्रवार के प्रस्थान मानकर झूले पर सवार होकर आना एवं हाथी पर चढ़कर जाना; बताया गया है।
पहले वाराणसेय पंचांगों में इसका उल्लेख नहीं था।परन्तु इधर के कुछ वर्षों से उनमें भी देखने को मिलने लगा है।तो भी; मान्यता में भिन्नता आ गई है।वाराणसी के पंचांगकार प्रतिपदा (पहले दिन) से न लेकर सप्तमी से दशमी तक ही ले रहे हैं।वे ‘मूले आवाहयेत् देवीम्’ (मूल नक्षत्र में देवी का आवाहन करें) को मुख्यता दे रहे हैं।
सप्तमी, अष्टमी और नवमी; ये तीनों तिथियाँ पंडालों की मूर्तिपूजा में अधिक विशिष्ट हैं, पर पूरे नवरात्र तो शाक्तसाधना के लिए सर्वोत्तम काल है! प्रथम दिन ही आवाहन कर हम नौ दिनों तक घर-घर श्रद्धा-भक्ति समर्पित करते हैं।ऐसे में सप्तमी को आगमन मानना आदि की महिमा में बाधा है।पुनश्च; यह मान्यता मिथिला (सम्भवतः बंगाल से) आयातित है तो हम परिवर्तित कर क्यों अपना विचार जबरन थोपना चाहते हैं? यहाँ मैं मैथिलमत का पक्षधर हूँ।
हाँ, एक बात और; ‘दोला’ शब्द अनेकार्थक है।इसके अर्थ हिंडोला, डोली, पालना खट्वाला आदि हैं।चूँकि डोली का प्रयोग ‘नरवाहन’ के रूप में हुआ है, इसलिए मेरी मान्यता है कि यहाँ ‘दोला’ झूले के लिए अधिक उपयुक्त है।
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