अभी बाकी है
~ डॉ रवि शंकर मिश्र "राकेश"
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जिंदगी अभी धीरे धीरे चल,
बदल रहे लोग यहाँ हर पल।
कुछ हसरतें अभी अधूरी है,
निपट लूँ इनसे जो जरूरी है।
जिंदगी उलझ पुलझ रह गई,
जिसे सुलझाना अभी बाकी है।
तुं अनवरत यूँ चलती जाती है,
क्या? अपना फर्ज निभाती है।
कितने नए रिश्ते नित्य बनते हैं ,
कितने रिश्ते बनकर यूं टूटते हैं।
तार तार विखरते रिश्तों को,
सुलझाना भी अभी बाकी है।
कयामत वाली इस सफर में,
मजबूरी भरी इस डगर में।
सफर भी नज्म बन जाते हैं,
अपने अपनों से छूट जाते हैं।
आपस में रूठे इन अपनों का,
दिल मिलाना अभी बाकी है।
देखो क्रूरता की हद हो गई है,
दूसरों के हिस्से छीन खा रहे हैं।
अपने ही अपनों को रुला रहे हैं,
लोगों की खुशियाँ जला रहे है।
लाचार विलख रहे लोगों को,
इंसाफ दिलाना अभी बाकी है।
अभी अश्क गिराना बाकी है,
कुछ रस्म निभाना बाकी है।
पहचान बनाना अभी बाकी है,
जाने की आभास करना बाकी है।
जिंदगी अभी धीरे-धीरे चल,
रोते को हँसाना अभी बाकी है ।
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