नागो चा के दशहरा
महरानी के झुठ्ठे नेउत देली । खैर दूनू कोई चलली दसहरा के मेला घूमे।
इधर कई साल से मेला-उला घूमे के मन नऽ करे । करे भी का ? पहिले वाला
बात तो रहल नऽ । पहिले दसहरा में दसहरा होबऽ हल । नौ दिन तक नौ दुर्गा के
पाठ-पूजा । नौमा दिन सांझ के इया दसमा दिन होमन होबऽ हल - होमन माने धूँआ
से गाँव के गाँव धमक उठऽ हल । जिला-जेवार तक तिल-हुमाद-गुङ्गुल के धूँआ से मँहके लगऽ हल । जइसहीं दसहरा चढ़ल कि माय, चाची इया
दादी-नानी-मामा जे कहऽ ,फूआ, ममानी दसहरा के दसहरा मानऽ हलन । एही
दसहरा में ओझा-तांतरिक, डाइन-कमाइन सब अप्पन मन्तर सीध करऽ हलन । ई
डर के मारे सब अपन पोता-नाती, बेटा-भतीजा भगिना-तक के खपड़ी के करिया
बालू, जमाइन ,टूटल सूई इया लोहा के टुकड़ी आउ चार-पाँच कली लहसुन
करिया डोरा में गांथ के पहिना दे हलन । एतने नऽ सूते घड़ी सब रेंगा-बुतरून के
छाती , दुननु कनपट्टी ,दुन्नु हथेली आउ दूनू गोड़ के तरबा में काजर लगा दे हलन । कोई-कोई तो
सामने लिलारो पर करिया टीका लगा दे हलन जेकरा से डाइन-कमाइन के नजरो
न लगे , खाए के तो कउनो गुंजाइसे न रहे । कहल जा हल कि जे दसई काटऽ हे
ओही सोहराई नाचऽ हे । बड़ी भाग से दसईं कटऽ हल । आउ ओही नौमी इया
कोई-कोई दसमी के दिन सबेरही नहा-फिच के तैयार हो जा हलन ।सभे में एके गो
उत्साह - मेला चले के रहऽ हल ।खैर, अब तो नऽ डाइन हे नऽ कमाइन रहल ।
दसहरा के उत्साह लेले सब उपहिए गेलन ।
नागो चा ओही दसईं काट के मेला जाएला छट पटाइत हलन । हमरा तो जाए
के नऽ हल वाकि नागो चा के चलते इया उनके बहाने चल देली ।
मेला तो मेला होबऽ हे । ओकरा में खुरपा से खटिया तक आउ सूइ से तोप-
तलवार तक मिलऽ हे । खाए-पीए के तो का कहूँ ,केतना तरह के मिठाई,केतना
तरह के नमकीन- केतना के तो नामो न जानूँ सब मिलऽ हे जेकरा देखते मुंह में
पानी के बाढ़ आ जएतो । वाकि नागो चा परम्परावादी हथ ,से कहलन कि चलऽ पहिले
दुर्गाजी के दरसन कएल जाए ।
नागो चा तो काजीसराम के परिकल हलन - से ओही मूर्ति खोजे
लगलन । उनका ई पता नऽ हल कि काजीसराय एगो गाँव के मेला हे ,भले जेवार
के लोग जुट जाथ । ई जे हे से कि गया के मेला हे । गाँव के नऽ सहर के ,ओहू में
कउनो छोटा-मुटा नऽ कमिसनरी वाला सहर के मेला । से गया के मेला में ऊ काजीसराय
वाला मूर्ति खोजे लगलन । उनखा हम समझौली - ई गया हौ चाचा ! इहाँ एगो नऽ बड़ी
मनी मुरती देखबऽ, आउ सब अलगे-अलगे तरह के ।
नागो चा समझदार ऐसन समझ गेलन ।कहलन - "हाँ बाबू ! सहर में जादे अदमी रहऽ
हथ । गिनती के अनुसार इहाँ जादे महिखासुर भी होबे करतन । ई गुने सहर में एगो
दुर्गा जी से कइसे काम चलतई ? इहाँ तो जादे दुर्गा जी के रह हीं के चही से हथी ।
बोलइतहीं हलन कि सामने एगो बड़का मंदिर देखाई देलक। हम तुरते टुभकली - देखऽ चचा, ई हथ माड़नपुर के दुर्गाजी । बड़का
विसाल पंडाल थरमा कोल पर । चचा तो ओकरा स्थाई मंदिर मान के दूर हलन -
विसवासे नऽ करथ । ई बाबू हिमाचल से मंदिर इहाँ कइसे आगेल आउ ओकरो
में दुर्गा जी साथे ?
दुर्गा जी दूनू हाँथ जोड़ले हलन, महिखासुर उनका दिलासा हाँथ
उठा के दे रहलन हल - भोट के बाद महिखा सुर के सामने सब देवतन
लोग हाँथ-गोड़ जोड़ले हलन ।
नागो चा के ई अच्छा नऽ लगल । हम समझौली - ई समइया एकरे हइ
चचा । आसुरी प्रवृति के सामने देवतन हाँथे जोड़ रहलन हे ।
चचा आगे बढ़लन । इहाँ पार्लियामेंट देखाबे के प्रयास कएल गेल हल ।
से चचा पूछलन - ई का हई बाबू ?
" ई दिल्ली के पारलियामेंट हौ चचा । चचा समझ गेलन - हाँ ! दुर्गा जी असली
स्थान पकड़लन हे । सब महिखासुर एहँई रहऽ हे ।
नेतवन के सांत करे के भी एही जगह हे । एही सोंच के अतंकवादी भी एहँई हमला करऽ हे ।‘‘
मूर्ति देख के चचा के दिल में दरद होबे लगल । दुर्गाजी कुरसी पर विराजमान हथ, उनकर
सामने गणेश जी के सेना, कार्तिकेय के सेना, चूहा, चुटरी, मोर, हंस सब उनकर
आदेस के प्रतीक्षा में हथ -कब उनकर आदेस ओबऽ हे । ठीक सामने पुरनका नोट
के एमिटेसन के हवन हो रहल हल ।
चचा आगे बढ़लन । एगो बड़का विसाल पंडाल हल । लगऽ हल कि एकाध् कोस में बनल हे । एकदमे नया लुक ।
पुछला पर पता चलल कि ई अयोघ्या जी में बने वाला राम मन्दिर के एमिटेसन हे ।
एतना बढ़ियाँ कि मत पूछऽ । भीतरे घूंसली । दुर्गा जी हलन । महिखासुर नऽ हलन
ऊ रावन के मारे में बेदम हलन । गनेस जी, सरसती जी, लछमी जी के भी मूरती
हल । कोई ताली बजा रहलन हल, कोई जय-जय कार कर कहलन हल । भीड़
एतना कि नागो चा के छेड़िए भुला गेल । अंगा भी फटते-फटते बचल । खैर,
हमनी बचते-बचाते आगे बढ़ली । कुछ दूर गेला पर एगो मसजिद बनल हल ।
मसजिद में जाए से नागो चा तो एकदम कतरा गेलन । वाकि हम उनका बहला -
फुसला के ले गेली । भितरे दुर्गा जी हलन - एमदम मोडर्न । हाँथ में मोवाइल फोन
लेले । इधर महिखोसुर के हाँथ में मोबाइल फोन हल । पता नऽ दूनू का बतिया रहलन
हल । दुर्गा जी के एगो हाँथ में माला, एगो में मोवाइल फोन, एगो में मसिनगन
आउ एगो में कमल के फूल । इहाँ वाली दुर्गा मइया के चारे गो हाँथ से काम चलाबे पड़ रहल हल । वाकि
इहाँ भीड़ कम नहिए हल । आगे बढलूँ । दुर्गा मइया के गोड़ लाग-उग करके दूसर
पंडाल देखे के तैयारी होयल । आगे बढ़ल जा रहली हल से जोर-जोर से जयकारी
सुनली । नागो चा के ध्यान दौड़ल से हमर बाँह पकडलन -अरे ओने देखऽ-ओने ।
बड़ी भीड़ हओ । इहाँ सब जुआन जुआन लड़िकन हथ । गेली ऊहँउ । इहाँ दुर्गाजी नऽ
हलन । खाली महिसासुर हलन । इनखरे सहादत-दिवस मनावल जा रहल हल ।
महिखासुर के जय-जय कारा । एक से एक बड़का नेता , खद्दर के कुर्ता-पैजामा
साफ-साफ पहिनले । माइक पर भाखन दे रहलन हल- गरज-गरज के । ई सबसे नया
चीज देखली । हम कहली -"देखऽ न चचा ! अभी का-का देखबऽ । देखहीं तो अएलऽ हे ।"
जहाँ-जहाँ गेली लाल-पीपर-हरियर विजुरी के चन्दोबा टंगल हल ।
संडक -गली -कूची सभे भक-भक इंजोर - दिन ऐसन । अब हमनी के ध्रे भी लौटेला
हल । से आगे बढ़ली तो वाकि सड़क एकदम अंहार । बिजुरी के खम्भा पास ,
सरकारी वौल उदास रोसनी दे रहल हल । थोड़ा दूर अएला पर जब आँख के
चकमकी सुस्त पड़ गेल तब कुछ साफ देखाई देवे लगल ।
ओही सड़किया पर एगो गेट बनल हल से हमनी ओकरे में घुंस गेली ।
दू गो मरकरी जल रहल हल । ई टीसन पर के बड़का नामी दुर्गा जी
हलन । पंडाल तो बड़का बनल हल - दिल्ली के कुतुब मिनार देखे में लगल । वाकि
दुर्गा जी अजब-गजब । इहाँ दुर्गा जी चलैत-फिरैत नजर अएलन । बीचे में एगो
पहाड़ आउ जंगल हे । महिखासुर भाग रहल हे आउ दुर्गा जी खदेड़ रहलन हे ।
कभी दुर्गा जी तीर धनुस, भाला, बरछा, साँप के पुछी पकड़ले सिंह पर दौड़इत
नजर आबइत हथ तो कभी महिखासुर भैसा पर चढ़के आँख लाल-लाल कएले
भागइत नजर आबइत हथ । नागो चा कहलन- अईं बाबू ! ई दुर्गा जी से रक्षसबा
पकड़ाइत काहे न हइन । एही सहर आउ देहात के खान-पान में अन्तर हे । एही
काजीसराय वाली दुर्गा जी रहतथिन हल तो का मजाल कि रक्षसबा एको डेग
भाग सकल हल । आँखे तड़ेर के छाती में भाला भौंक देतथिन हल - एतना देरी
लगतई हल । सुन के उहाँ पर के लोग तो हँसे लगलन , वकि चचा बात मजे के बोल देलन । हर कोई में ई सच्चाई के
परखे के कुबत नऽ हल । जेकरा सच्चाई के ज्ञान न हई ऊ सच्चाई पर हँसबे न करतई ।
एहँइ हमर बुद्धी के परीक्षा हो जा हे । गेयान कोई साकिटफिटिक में बान्हल न रहे ।
खैर हमनी आगे बढ़ली । स्टेज पर दीआ बर रहल हल । बिजुरी के हलका रौसनी
हल । इहई देखली-महिखासुर मर्दिनी , दस हाँथ वाली मइया - दसों में कुछ न
कुछ हथियार-आयुध लेले । भैसा के मूड़ी काटलन से महिसासुर पैदा हो गेल ।
ओकरो भाला भोकलन ,साँप से कटौलन, तलवार से मूड़ी काटलन हल से तलवार
में खून लगले हल । एतना बढ़िया कि मूर्ति पर से आँख न हटे - एकदम काजी सराय
वाली मइया दुर्गा ,दुर्गति नागिनी ,शुम्भ-निथुम्भ विनासिनी, महिखासुर मर्दिनी । नागो
चा का-का बोल गेलन । गणेश जी, सरसती जी, कार्तिकेय जी, आउ लछमी जी,
सबके सब दुर्गा जी के आजू-बाजू में । ई असली मूर्ति हलन ।
नागो चा के मंसा पूरा हे गेल । कहलन चलऽ हो - अब घरे चलल जाए ।
उहाँ परसादो मिलन - गड़ी आउ बतासा । परसादी खा के हमनी चल देली ।
नागो चा गाँव में आके गली -गली के मोड़ पर परचार करे लगलन- सहर से दसहरा
उपह गेलो बाबू । हिन्दू अपने गोड़ में अपने कुल्हाड़ी मार रहलन
हे । दूसर धरम के लोग अपन धरम मे मजाक नऽ उड़ावे वाकि सहर वाला हिंदुअन
के धरम - करम से कोई मतलब न हे । अपने देवतन-देवी के ,पुरखन के ई मजाक
उड़ावऽ हथ । गाँवो में लोग एकरे देखा-देखी कर रहलन हे आउ अपना के एडवांस
कहऽ हथ । आग लगे ऐसन फैसन में जेकरा से हमर वेद- पुरान के बात नस्ट-भ्रस्ट हो जाए ।
पूजा के पूजा रहे दऽ , त्योहार मनावऽ-ओकरा मजाक मत बनबऽ ।
आउ अन्त में खूब ताकत लगा के बोललन-- बोलो-बोलो दुर्गा मइया की जय ।डॉ सच्चिदानान्द प्रेमी
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