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धनंजय जयपुरी की दो पुस्तकें 'गीता द्रुतविलम्बित' और 'कहानी अपनी अपनी' का लोकार्पण किया गया।

धनंजय जयपुरी की दो पुस्तकें 'गीता द्रुतविलम्बित' और 'कहानी अपनी अपनी' का लोकार्पण किया गया।

जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन औरंगाबाद के तत्वावधान में रविवार को आई एम ए हॉल में कवि एवं कहानीकार धनंजय जयपुरी की दो पुस्तकें 'गीता द्रुतविलम्बित' और 'कहानी अपनी अपनी' का लोकार्पण किया गया। पुस्तक का लोकार्पण डॉ गुरुचरण सिंह,डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह,एस सिन्हा कॉलेज के प्राचार्य वेदप्रकाश चतुर्वेदी, डॉ सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह, डॉ सच्चिदानंद प्रेमी, डॉ सुरेंद्र प्रसाद मिश्र, मिथिलेश मधुकर , डॉ सी एस पांडेय, भैरवनाथ पाठक, विवेकानंद मिश्र ,धनंजय जयपुरी आदि ने किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता सच्चिदानंद सिन्हा कॉलेज औरंगाबाद के हिंदी के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह और संचालन वरीय पत्रकार एवं लेखक प्रेमेंद्र मिश्र ने किया। कार्यक्रम का शुभारंभ आगत अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर किया। समीक्षा, शिवांगी और स्नेहा ने सुमधुर स्वर में सरस्वती वंदना गायी।
अपनी पुस्तकों पर चर्चा करते हुए कवि एवं लेखक धनंजय जयपुरी ने बताया कि अपनी पुस्तकों के विमोचन पर उन्हें काफी प्रसन्नता हो रही है। पुस्तक में जिन कहानियों का संकलन किया गया है उन कहानियों के कई पात्र अभी जीवित हैं । उन्होंने कहा कि ऐसे पात्रों से ही उन्हें कहानी लिखने की प्रेरणा मिली । 'गीता द्रुत विलम्बित' रचना में इसका पूरा ध्यान रखा गया है कि गीता के मूल श्लोक के भाव एवं अर्थ में कोई भिन्नता नहीं हो।
इस मौके पर मिथिलेश मधुकर ने कहा कि साहित्य सर्जना दुरूह भी है तो सुगम भी है। इसकी लगन जिसे लग जाए वह साहित्य समृद्धि में जुट जाता है। धनंजय जयपुरी की रचनात्मक शक्ति का पता उनकी पुस्तकों से लगता है। अभी तक जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के तत्वावधान में दर्जन भर पुस्तकें समाज में आ गयी हैं। यह संस्था साहित्य समृद्धि के लिए कटिबद्ध है।
डॉ सुरेंद्र प्रसाद मिश्र ने कहा कि इन पुस्तकों की भाषा में प्रौढ़ता एवं परिपक्वता है और अभिव्यक्ति की सहजता है। इससे लेखक व कवि धनंजय जयपुरी जी की विलक्षण प्रतिभा झलकती है। 'गीता द्रुतविलम्बित' में गीता का भावानुवाद कस्तुरी की गंध की तरह सुवासित होती रहेगी।
डॉ सच्चिदानंद प्रेमी ने कहा कि 'गीता द्रुत विलम्बित' पुस्तक बोधगम्य और सहज है। इसके छंद को गाया भी जा सकता है और आनन्द की प्राप्ति की जा सकती है। आज जब द्रुत विलम्बित छंद लगभग विलुप्त हो रहा है,वैसे समय में धनजंय जी के द्वारा द्रुत विलम्बित छंद में रचना करना बहुत ही प्रशंसनीय है।
एस पी जैन कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह ने कहा कि हिंदी साहित्य के दो विधाओं गद्य व पद्य की पुस्तकों को एक ही साथ विमोचन करना बहुत ही सराहनीय कार्य है । इससे धनजंय जी की प्रभावी रचनाशीलता का पता चलता है। 'गीता द्रुतविलम्बित' में संस्कृत शब्दों की बहुलता है जबकि 'कहानी अपनी अपनी' में बोलचाल के शब्दों की भरमार है। यह कवि व लेखक की शब्द संयोजन की जादुई शक्ति कही जा सकती है।
विवेकानंद मिश्र ने कहा कि धनंजय जयपुरी जी एक संवेदनशील रचनाकार हैं। इन्होंने अपनी रचनात्मकता से साहित्य के क्षेत्र को आलोकित किया है । इन्होंने अपने अनुभवों को संवेदना के साथ अपनी रचनाओं में व्यक्त किया है।
एस पी जैन कॉलेज के प्राचार्य प्रो गुरुचरण सिंह ने कहा कामता प्रसाद सिंह 'काम' की धरती पर साहित्य की ऊर्जा से युक्त रचनाकारों की भारी संख्या देखकर गर्वानुभूति हो रही है। कवि धनंजय जयपुरी की पुस्तक 'गीता द्रुतविलम्बित' अदोष काव्य कृति है। इसमें दोष निकालना मुश्किल है। इसमें गीता के गूढ़ रहस्यों को लोक भाषा हिंदी में भावानुकूल एवं सहजता से उद्घाटित किया गया है। 'कहानी अपनी अपनी' में समाज की कहानी और घर - घर की कहानी है।
एस सिन्हा कॉलेज औरंगाबाद के प्राचार्य डॉ वेदप्रकाश चतुर्वेदी ने कहा कि गीता का सम्पूर्ण अर्थ समझना बहुत मुश्किल है। ऐसे गूढ़ अर्थ एवं भाव के ग्रन्थ गीता को द्रुत विलम्बित छंद में रचना करना बहुत प्रशंसनीय है। यह पुस्तक बहुत उच्च कोटि की है। इसे साहित्य अकादमिक पुरस्कार के लिए भेजनी चाहिए।
अध्यक्षता कर रहे डॉ सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा कि धनंजय जी की पुस्तक 'गीता द्रुतविलम्बित' कृष्ण परम्परा का काव्य है। विशिष्ट शैली एवं वर्णिक छंद द्रुतविलम्बित छंद में रचना करना कवि का साहसिक कार्य है। कहानीकार ने 'कहानी अपनी अपनी' में समाज में व्याप्त विसंगतियों जैसे चोरी, ठगी, दहेज-लोभ का वर्णन यथार्थ ढंग से किया है। हालाँकि इसमें कुछ कहानियाँ उपदेशात्मक भी हैं।
कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन डॉ महेंद्र पांडेय ने किया।
कार्यक्रम में डॉ शिवपूजन सिंह , शिवनारायण सिंह, डॉ हनुमान राम,प्रो रामाधार सिंह, प्रो संजीव रंजन,भीम सिंह, रामकिशोर सिंह, कालिका सिंह, विजय सिंह, शम्भूनाथ पांडेय, रामभजन सिंह,पुरुषोत्तम पाठक,चंद्रशेखर प्रसाद साहु,अनिल कुमार सिंह, नागेंद्र केसरी,जनार्दन मिश्र जलज, अनुज बेचैन,चन्दन कुमार, अशोक पांडेय,यज्ञ नारायण मिश्रा, डॉ मृदुला मिश्र, शकुंतला सिंह, पुनिता देवी, श्रवण सिंह, सुमन्त कुमार सहित सैकड़ों साहित्यप्रेमी उपस्थित थे।
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