कामदेव : प्रेम और सौहार्द का द्योतक
सत्येन्द्र कुमार पाठक
धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष का रूप कामदेव, कामसूत्र, कामशास्त्र कार्य, कामना और कामेच्छा जीवन आनंददायक, सुखी, शुभ और सुंदर रूप कामदेव है । पुरणों के अनुसार भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के पुत्र कामदेव का विवाह प्रेम एवं आकर्षण की देवी धर्म की भर्या भर्या श्रद्धा की पुत्री रति से हुआ था । ब्रह्माजी के पुत्र और भगवान शिव के प्रिय है ।पश्चिमी देशों के क्यूपिड और यूनानी देशों में इरोस एवं भारत मे कामदेव को प्रेम का प्रतीक है । कामदेव को 'रागवृंत', 'अनंग', 'कंदर्प', अनंग ,मार , मन्मन्थ', 'मनसिजा', 'मदन', 'रतिकांत', 'पुष्पवान' तथा 'पुष्पधंव' , अर्थ देव , गंधर्व , यक्ष और इरोस आदि कहा जाता हैं। कामदेव को ब्रह्मांड के वासियों में कामेच्छा उत्पन्न करने के लिए उत्तरदायी हैं। कामदेव के हाथ में धनुष और बाण धारण कर तोते के रथ पर मकर के चिह्न से अंकित लाल ध्वजा लगाकर विचरण करते हैं। शास्त्रों में कामदेव को हाथी पर बैठे हुए उल्लेख है। कामदेव के धनुष मिठास से भरे गन्ने का बने और मधुमक्खियों के शहद की रस्सी लगी तथा धनुष का बाण अशोक के पेड़ के महकते फूलों के अलावा सफेद, नीले कमल, चमेली और आम के पेड़ पर लगने वाले फूलों से बने हैं। कामदेव के बाणों में स्तंभन , मन्मन्थ ,जृम्भन , शोषण और मारण है । मध्यप्रदेश का खजुराहो' को मदन कामदेव मंदिर कहा जाता है। काम के देवता कामदेव और उनकी पत्नी रति की कथा को आज भी ये जीवंत बनने के लिये मंदिर घने जंगलों के भीतर पेड़ों से छुपा हुआ है। भगवान शंकर द्वारा तृतीय नेत्र खोलने पर कामदेव भस्म होने के स्थान पर कामदेव का पुनर्जन्म तथा रति के साथ पुन: मिलन हुआ था। वसंत ऋतु कामदेव का मित्र है । मुद्गल पुराण के अनुसार यौवनं स्त्री च पुष्पाणि सुवासानि महामते:। गानं मधुरश्चैव मृदुलाण्डजशब्दक:।। उद्यानानि वसन्तश्च सुवासाश्चन्दनादय:। सङ्गो विषयसक्तानां नराणां गुह्यदर्शनम्।। वायुर्मद: सुवासश्र्च वस्त्राण्यपि नवानि वै। भूषणादिकमेवं ते देहा नाना कृता मया।। कामदेव का वास यौवन, स्त्री, सुंदर फूल, गीत, पराग कण या फूलों का रस, पक्षियों की मीठी आवाज, सुंदर बाग-बगीचों, वसंत ऋतु, चंदन, काम-वासनाओं में लिप्त मनुष्य की संगति, छुपे अंग, सुहानी और मंद हवा, रहने के सुंदर स्थान, आकर्षक वस्त्र और सुंदर आभूषण धारण किए शरीरों में रहता है। इसके अलावा कामदेव स्त्रियों के शरीर में भी वास करते हैं, खासतौर पर स्त्रियों के नयन, ललाट, भौंह और होठों पर इनका प्रभाव काफी रहता है। भगवान शिव की पत्नी माता सती ने पति के अपमान से आहत और पिता के व्यवहार से क्रोधित होकर यज्ञ की अग्नि में आत्मदाह कर लिया था तब सती ने बाद में पार्वती के रूप में जन्म लिया। सती की मृत्यु के पश्चात भगवान शिव संसार के सभी बंधनों को तोड़कर, मोह-माया को पीछे छोड़कर तप में लीन हो गए थे । वे आंखें खोल ही नहीं रहे थे। ऐसे में सभी देवों की अनुशंसा पर कामदेव ने उन पर अपना बाण चलाकर शिव के भीतर देवी पार्वती के लिए आकर्षण विकसित किया। शिव ने क्रोधित होकर जब आंखें खोलने पर कामदेव भस्म हो गए। रति द्वारा भगवान शिव की उपासना के बाद शिवजी ने उन्हें जीवनदान दे दिया था । महाभारत और श्रीमद्भागवत के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण को कामदेव ने अपने नियंत्रण में लाने का प्रयास किया था। कामदेव ने भगवान श्रीकृष्ण से यह शर्त लगाई कि वे उन्हें भी स्वर्ग की अप्सराओं से सुंदर गोपियों के प्रति आसक्त कर देंगे। श्रीकृष्ण ने कामदेव की सभी शर्त स्वीकार की और गोपियों संग रास भी रचाया लेकिन भगवान श्री कृष्ण के मन में वासना ने घर नहीं किया। रति ने कामदेव से विवाह कर ली । शिव ने कामदेव को भस्म होने पर रति विलाप करने लगी । शिव ने कामदेव के पुनः कृष्ण के पुत्र रूप में धरती पर जन्म लेने का वरदान दिया था । भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी रुक्मिणी के गर्भ से कामदेव का प्रादुर्भाव प्रद्युम्न पुत्र हुए थे । श्रीकृष्ण से दुश्मनी के चलते राक्षस शंभरासुर नवजात प्रद्युम्न का अपहरण करके ले गया और उसे समुद्र में फेंक आया। उस शिशु को एक मछली ने निगल लिया और वो मछली मछुआरों द्वारा पकड़ी जाने के बाद शंभरासुर के रसोई घर में ही पहुंच गई।तब रति रसोई में काम करने वाली मायावती नाम की एक स्त्री का रूप धारण करके रसोईघर में पहुंच गई। वहां आई मछली को उसने ही काटा और उसमें से निकले बच्चे को मां के समान पाला-पोसा। जब वो बच्चा युवा हुआ तो उसे पूर्व जन्म की सारी याद दिलाई गई। इतना ही नहीं, सारी कलाएं भी सिखाईं तब प्रद्युम्न ने शंभरासुर का वध किया और मायावती को अपनी पत्नी रूप में द्वारका ले आए। भगवान पुरणों के अनुसार एक समय ब्रह्माजी प्रजा वृद्धि की कामना से ध्यानमग्न से तेजस्वी पुत्र काम उत्पन्न हुआ था । ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि उत्पन्न करने के लिए प्रजापतियों को उत्पन्न कर काम की सहभागिता के लिए काम की नियुक्ति की परंतु कामदेव वहां से विदा होकर अदृश्य हो गए। काम को अदृश्य होने पर ब्रह्माजी क्रोधित हुए और शाप दे दिया कि तुमने मेरा वचन नहीं माना इसलिए तुम्हारा जल्दी ही नाश हो जाएगा। शाप सुनकर कामदेव भयभीत हो गए और हाथ जोड़कर ब्रह्माजी के समक्ष क्षमा मांगने लगे। कामदेव की अनुनय-विनय से ब्रह्माजी प्रसन्न होने के बाद काम को रहने के लिए 12 स्थान में स्त्रियों के कटाक्ष, केश राशि, जंघा, वक्ष, नाभि, जंघमूल, अधर, कोयल की कूक, चांदनी, वर्षाकाल, फाल्गुन , वसंत , शरद ऋतु , चैत्र और वैशाख महीना में दिया है । ब्रह्माजी ने कामदेव को पुष्प का धनुष और 5 बाण देकर विदा कर दिया।ब्रह्माजी से मिले वरदान की सहायता से कामदेव तीनों लोकों में भ्रमण करने लगे और भूत, पिशाच, गंधर्व, यक्ष सभी को काम ने अपने वशीभूत कर लिया। फिर मछली का ध्वज लगाकर कामदेव अपनी पत्नी रति के साथ संसार के सभी प्राणियों को अपने वशीभूत करने बढ़े। इसी क्रम में वे शिवजी के पास पहुंचे। भगवान शिव तब तपस्या में लीन थे तभी कामदेव छोटे से जंतु का सूक्ष्म रूप लेकर कर्ण के छिद्र से भगवान शिव के शरीर में प्रवेश कर गए। इससे शिवजी का मन चंचल हो गया। उन्होंने विचार धारण कर चित्त में देखा कि कामदेव उनके शरीर में स्थित है। इतने में ही इच्छा शरीर धारण करने वाले कामदेव भगवान शिव के शरीर से बाहर आ गए और आम के एक वृक्ष के नीचे जाकर खड़े हो गए। फिर उन्होंने शिवजी पर मोहन नामक बाण छोड़ा, जो शिवजी के हृदय पर जाकर लगा। इससे क्रोधित हो शिवजी ने अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से उन्हें भस्म कर दिया।कामदेव को जलता देख उनकी पत्नी रति विलाप करने लगी। तभी आकाशवाणी हुई जिसमें रति को रुदन न करने और भगवान शिव की आराधना करने को कहा गया। फिर रति ने श्रद्धापूर्वक भगवान शंकर की प्रार्थना की। रति की प्रार्थना से प्रसन्न हो शिवजी ने कहा कि कामदेव ने मेरे मन को विचलित किया था इसलिए मैंने इन्हें भस्म कर दिया। अब अगर ये अनंग रूप में महाकाल वन में जाकर शिवलिंग की आराधना करेंगे तो इनका उद्धार होगा। तब कामदेव महाकाल वन आए और उन्होंने पूर्ण भक्तिभाव से शिवलिंग की उपासना की। उपासना के फलस्वरूप शिवजी ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम अनंग, शरीर के बिन रहकर भी समर्थ रहोगे। कृष्णावतार के समय तुम रुक्मणि के गर्भ से जन्म लोगे और तुम्हारा नाम प्रद्युम्न होगा। कामदेव मंत्र :कामदेव के बाण ही नहीं, उनका 'क्लीं मंत्र' भी विपरीत लिंग के व्यक्ति को आकर्षित करता है। कामदेव के इस मंत्र का नित्य दिन जाप करने से न सिर्फ आपका साथी आपके प्रति शारीरिक रूप से आकर्षित होगा बल्कि आपकी प्रशंसा करने के साथ-साथ वह आपको अपनी प्राथमिकता भी बना लेगा। कहा जाता है कि प्राचीनकाल में वेश्याएं और नर्तकियां भी इस मंत्र का जाप करती थीं, क्योंकि वे अपने प्रशंसकों के आकर्षण को खोना नहीं चाहती थीं। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र का लगातार जाप करते रहने की वजह से उनका आकर्षण, सौंदर्य और कांति बरकरार रहती थी।कामदेव को हिंदू शास्त्रों में प्रेम और काम का देवता माना गया है।[2] उनका स्वरूप युवा और आकर्षक है। वे विवाहित हैं और रति उनकी पत्नी हैं। वे इतने शक्तिशाली हैं कि उनके लिए किसी प्रकार के कवच की कल्पना नहीं की गई है। उनके अन्य नामों में रागवृंत, अनंग, कंदर्प, मन्मथ, मनसिजा, मदन, रतिकांत, पुष्पवान, पुष्पधंव आदि प्रसिद्ध हैं। भगवान महावीर के तीर्थकाल में 3 कामदेव हुआ थे, हिंदू देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु के पुत्र और कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न, कामदेव का अवतार है । कामदेव के आध्यात्मिक रूप को हिंदू धर्म में वैष्णव अनुयायियों द्वारा कृष्ण भी माना जाता है।कामदेव का धनुष प्रकृति के सबसे ज्यादा मजबूत उपादानों में से एक है। यह धनुष मनुष्य के काम में स्थिर-चंचलता जैसे विरोधाभासी अलंकारों से युक्त है। इसीलिए इसका एक कोना स्थिरता का और एक कोना चंचलता का प्रतीक होता है। वसंत, कामदेव का मित्र है इसलिए कामदेव का धनुष फूलों का बना हुआ है। इस धनुष की कमान स्वर विहीन होती है। यानी, कामदेव जब कमान से तीर छोड़ते हैं, तो उसकी आवाज नहीं होती। इसका मतलब यह कि काम में शालीनता जरूरी है। तीर कामदेव का सबसे महत्वपूर्ण शस्त्र है। यह जिस किसी को बेधता है उसके पहले न तो आवाज करता है और नही शिकार को संभलने का मौका देता है। इस तीर के तीन दिशाओं में तीन कोने होते हैं, जो क्रमश: तीन लोकों के प्रतीक माने गए हैं। इनमें एक कोना ब्रह्म के आधीन है जो निर्माण का प्रतीक है। यह सृष्टि के निर्माण में सहायक होता है। दूसरा कोना विष्णु के आधीन है, जो ओंकार या उदर पूर्ति (पेट भरने) के लिए होता है। यह मनुष्य को कर्म करने की प्रेरणा देता है। कामदेव के तीर का तीसरा कोना महेश (शिव) के आधीन होता है, जो मकार या मोक्ष का प्रतीक है। यह मनुष्य को मुक्ति का मार्ग बताता है। यानी, काम न सिर्फ सृष्टि के निर्माण के लिए जरूरी है, बल्कि मनुष्य को कर्म का मार्ग बताने और अंत में मोक्ष प्रदान करने का रास्ता सुझाता है। कामदेव के धनुष का लक्ष्य विपरीत लिंगी होता है। इसी विपरीत लिंगी आकर्षण से बंधकर पूरी सृष्टि संचालित होती है। कामदेव का एक लक्ष्य खुद काम हैं, जिन्हें पुरुष माना गया है, जबकि दूसरा रति हैं, जो स्त्री रूप में जानी जाती हैं। कवच सुरक्षा का प्रतीक है। कामदेव का रूप इतना बलशाली है कि यदि इसकी सुरक्षा नहीं की गई तो विप्लव ला सकता है। इसीलिए यह कवच कामदेव की सुरक्षा से निबद्ध है। यानी सुरक्षित काम प्राकृतिक व्यवहार के लिए आवश्यक माना गया है, ताकि सामाजिक बुराइयों और भयंकर बीमारियों को दूर रखा जा सके। दैत्य तारकासुर ने आतंक को वध के लिये देवताओं ने कामदेव से विनती की कि वह शिव-पार्वती में प्रेम को जन्म दे क्योंकि तारकासुर को वह वरदान था कि केवल शिव- पार्वती का पुत्र ही तारकासुर का वध कर सकता है। कामदेव तथा देवी रति कैलाश पर्वत भगवान शिव का ध्यान भंग करने के लिये गये । कामदेव का बाण लगने से भगवान शिव का ध्यान भंग हो गया था । भफवन शिव कामदेव पर क्रोधित हो गए तथा उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोल कर कामदेव को भस्म कर दिया ।इसपर देवी रति को अपने पति की मृत्यु पर क्रोध आ गया और उन्होंने माता पार्वती को श्राप दिया कि उनके गर्भ से कोई भी पु्त्र जन्म नही लेगा। यह श्राप सुनकर पार्वती दुखी हो गयी परंतु भगवान शिव ने माता पार्वती को समझाया कि उन्हें दुःखी नहीं होना चाहिये तथा उन्होंने पार्वती से विवाह किया।जब देवताओं ने इस श्राप के बारे मे तथा कामदेव की मौत के बारे मे सुना तो वह बड़े व्याकुल हो गये और उन्होंने देवी रति समेत भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे कामदेव को पुनः जीवन प्रदान करें । इस पर भगवान शिव ने यह कहा कि यह असंभव है क्योंकि किसी को पुनर्जीवित करना प्रकृति के नियम के विरुद्ध है । हाँ, एक कार्य अवश्य हो सकता है कि कामदेव को पुनर्जन्म किया जा सकता है । परंतु कामदेव के भस्म होने से जन्म और पुनर्जन्म की प्रक्रिया ही रुक गई। इस पर भगवान शिव ने कामदेव की आत्मा को एक आकार दे दिया और उस आकार को अनंग नाम प्रदान किया, जिससे कि कामदेव भस्म होकर भी अपना कार्य कर सकें। परंतु जब देवताओं ने पुनः उनसे कामदेव को पुनर्जन्म देने की प्रार्थना की थी । भगवान शिव ने यह आशीर्वाद दिया कि कामदेव को पुनर्जन्म, वैवस्वत मन्वंतर के 28वें द्वापर युग के अंत में भगवान श्रीकृष्ण और माता रुक्मणी के रूप में मिलेगा और उसके बाद उन्हें उनका शरीर पुनः प्राप्त हो जाएगा । इतिहास कथाओं में कामदेव के नयन, भौं और माथे का विस्तृत वर्णन मिलता है। उनके नयनों को बाण या तीर की संज्ञा दी गई है। शारीरिक रूप से नयनों का प्रतीकार्थ ठीक उनके शस्त्र तीर के समान माना गया है। उनकी भवों को कमान का संज्ञा दी गई है। कामदेव का माथा धनुष के समान है, जो अपने भीतर चंचलता समेटे होता है लेकिन यह पूरी तरह स्थिर होता है। माथा पूरे शरीर का सर्वोच्च हिस्सा है, यह दिशा निर्देश देता है।हाथी को कामदेव का वाहन माना गया है। शास्त्रों में कामदेव को तोते की वाहन है ।प्रकृति में हाथी प्राणी चारों दिशाओं में स्वच्छंद विचरण करता है। मादक चाल से चलने वाला हाथी तीन दिशाओं में देख सकता है और पीछे की तरफ हल्की सी भी आहट आने पर संभल सकता है। हाथी कानों से हर तरफ का सुन तथा सूंड से चारों दिशाओं में वार कर सकता है। ठीक इसी प्रकार कामदेव का चरित्र भी देखने में आता है। ये स्वच्छंद रूप से चारों दिशाओं में घूमते हैं और किसी भी दिशा में तीर छोड़ने को तत्पर रहते हैं। कामदेव किसी भी तरह के स्वर को तुरंत भांपने का माद्दा रखते है। कामदेव को फाल्गुन मास , वसन ऋतु तथा चैत्र कृष्ण प्रतिपदा और चैत्र मास रति को समर्पित है ।
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