कविसम्मेलन।; संचालक के पंजे में बेचारा अध्यक्ष
कवि सम्मेलन का नाम सुनते ही विचित्र मनोदशा का अनुभव न हुआ तो समझिए ,संवेदनशीलता का कुछ अंश रेहन होने वाला है।इसमें श्रोता से अधिक कवियो की रुचि का छलकना मत्वपूर्ण है क्योकि वे उस दुकानदार की तरह हैं जो अपना माल घाटा सहकर भी अग्राहक को ही सही देने के इच्छुक रहतै है। समाज में आजकी कविताई का हाल ऐसा है कि कवि स्वयं में आत्म विभोर है ।वह श्रोताओं की मानसिकता से बहूत दूर जा कर अपनी रचनाओं का बोझ सामने रख देता है।बेचारे श्रोता भी किसी विवशता से बैठे रहने पर प्रतिबद्ध ।ऐसे अनेक कवि सम्मेलन देखे हैं जिनमें कुछ तो हसोड़ कवि चुटकुलों के द्बारा श्रोताओं की तंद्रा तोड़ने में सिद्धहस्त होते हैं,कुछ बेवख्त की शहनाई की तरह अपनी रंगीन मिजाज़ी भेंट करते हुए श्रोताओं का दिल लूट लेना चाहते हैं। कुछ की कविताएँ वयानवाजी से भरी हवाई उड़ान की तरह घरघराती सभागार में गूँऐज कर लुप्त हो जाती है।लेकिन बहुत -बहुत धन्यवाद देना होगा इस सम्मेलन के संचालक को जो कवियों के साथ श्रोताओं को भी बाँध कर रखने में सक्षम हो जाते हैं।
कवि सम्मेलन बड़े साइज का हो या छोटे, दो ऐसे पदाधिकारी की जरूरत हौती ही है जो आयोजन के आरंभ से अंत तक विराजमान रहे।भले श्रोताओ की संख्या चटती ही क्यों न रहे।कभी कभी तो बेचारा माइक और दरी वाला बच जाता है।यह ऐसे आयोजन का कृष्णपक्ष समझें।कावयाठी कवियों की संख्या और श्रोताओं की संख्या का भी उतना हो महत्व है जितना इन्द्र के दरवार में नृत्य-गान का।मंच और मंच पर विराजमान होनेवालों के ललाट पर गर्व जैसी मुस्कुराती रेखाओं काअंतर्ध्यानी अनुभव किया जा सकता हैं।आयोजक जब मंच से माइक पर आदरणीय, परम सम्मानीय आदि आद्य शब्दो ं के साथ कवियों का आवाहन करते हैं साथ ही श्रोताओं से तालियों की चाहे अनचाहे ध्वनियों की मांग करते हुए एक एक शब्ब ठहर-ठहर कर बोलते हैं तब कक्षका माहौल एकदम से सपक्ष हो जाता है। कवि लोग इस तरह विराज जाते हैं जैसे राजा भोज के दरवार विद्वान सरस कवि।फिर आयोजक की ओर का स्वागत माला पहनवाकर किया जाता है। अध्यक्ष के नाम का प्रस्ताव रखने भर की देर होती है समर्थन मे तनिक भी विलम्ब नही, तालियों के साथ ही सम्पन्न हो जाता है।तब चारणवृति के प्रतीक संचालक प्रकट होकर आरंभ करते हैं अध्यक्षजी की आज्ञा से कहकरपहले तो लम्बी चौड़ी भूमिका तैयार करते हैं फिर कुछ अपनी कुछ औरों की दो-दो,चार-चार पंक्तियों के साथ काव्य-पाठ का संचालन आरंभ करते हैं।आरंभ जिसकवि का आवाहन होता है उसकी कई शर्तें होती हैं य। यदि कवियो श्रोताओं की संख्या कम है तब नये,या नजमनेवाले को जोत दिया जाता है ,आवाहनी कसीदे के साथ स्वागत मे ताली बजवा दी जा ती है बेचारा नया कवि गद गद भाव से भारी कदमो से मुस्कान प्रस्तुत करते हुए आभार और विनम्रता की पुरोवाणी के साथ अपनी कविता रखते है।प्रथम कवि के माइक से हटते ही संचालक हावी हो जाते हैं पठित कविता की खूबियाँ(न होने पर भी) बडे ढंग से रखते हुए फिर अपनी ओर से चार पंक्तियॉ रखते हुए पाँच मिनट का समय चाट लेते हैं।इसतरह प्रत्येक कवि के आवाहन और माइक से विदाई के समय कम से कम पाँच मिनट का समय संचालकी के नाम सुरक्षित होता है।
यदिश्रोताओं की संख्या प्रसंशनीय हो तब तो जमाने वाले चुटकुले बाज या मधुरकंठी गीतकार को प्रस्तुत करते हैं। समय की दृष्टि से विचार करें तो५०%में सभी कवियों को निपटाना है तथा ५०%संचालक स्वयं अपने लिए सुरक्षित रखते हैं।कोई -को ई तो समय की कमी पर भी कवियों केलिए फरमान जारी करते हैं।
बेचारा अध्यक्षता की माला गले डाले अध्यक्ष ऊपर-ऊपर हँसी और भीतर भीतर कुढ़न महसूस करते हुए उस समय का इंतजार करता है,। जब बड़ी विनम्रता से घोषणा होती है कि अब आदरणीय कवि मनीषी वरिष्ठ विद्वान धैर्यवान आज के कवि सम्मेलन के अध्यक्ष से अनुरोध है कि अपनी अध्क्षीय रचनाओं से हमारा मार्ग दर्शन करें।अब तक श्रोताओं की संख्या जो२०% ठहरी जिसमें कुछ मंचासीन कवि के साथ श्रोताओ की अगली कुर्सियों पर विराज मान विवशता के मारे श्रोता।अध्यक्ष बुझते मन से अध्यक्षीय पुरोवाक् के साथ रचनाएँ प्रस्तुत करते हैं।
यह सामान्य सम्मेलनी व्यथा काआदर्श स्वरूप है मेरी जानकारी मे कभी ऐसा भी होता है कि दुर्धर्ष अध्यक्ष पिनक कर संचालक से माइक छीनकर
संचालक की आलोचना के साथ अपनी कविता सुनाने लगे।संचालक की क्या औकात बेचारा श्रोताओं के बीच आकर बैठ जाने के अलावा क्या करते।डा रामकृष्ण
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