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लोग कहते हैं उसकी खता ही नहीं

लोग कहते हैं उसकी  खता ही नहीं

बोलता  झूठ  कहता  छला ही नहीं
लोग कहते हैं  उसकी  खता ही नहीं 

लूट ली  सब कमाई  धरी गांठ की
क्या बताएं  तुम्हें कुछ  बचा ही नहीं 

वो लड़ाने  भिड़ाने में  माहिर बड़ा
काम उसका किसी को ज़चा ही नहीं 

धर्म की  जाति की  बात करता सदा
और कुछ  पास उसके  बचा ही नहीं 

झूठ को   सच हमेशा   बताता रहा
राह सच की  कभी भी  चला ही नहीं 

कत्ल होते  यहाँ हैं  खुलेआम  पर
है जो कातिल उसे दी सजा ही नहीं 

साफ-सुथरी  बना ली है  छबि आपने
भृष्ट अधिकारी  कोई  हटा ही नहीं 

रोज़ शोषण  गरीबों का  होता यहॉ
प्रश्न उनके  किसी ने  सुना ही नहीं 

दौड़ता-भागता  फिर रहा किस लिए
धन इकट्ठा  किया पर  छका ही नहीं 

क्या समर्पण  तुम्हारा  यही देश को
देश का   भक्त देता   दगा ही नहीं 

गर्व  किसपे करें  'जय' बताओ भला
देश को  तो कहीं का   रखा ही नहीं
                      *
~जयराम जय
'पर्णिका',बी -11/1,कृष्ण विहार,आ.वि.
कल्याणपुर,कानपुर-208017 (उ०प्र०)
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