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ममता के लिए भी कांग्रेस नरम चारा

ममता के लिए भी कांग्रेस नरम चारा

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
मेघालय मंे जिस तरह से भरभराकर कांग्रेसी ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की गोद मंे चले गये हैं, उससे लगता है कि ममता के लिए भी कांग्रेस को तोड़ना सबसे आसान है। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव मंे कांग्रेस जीरो हो गयी लेकिन ममता ने सबसे प्राथमिकता उनको दी जो नेता टीएमसी छोड़कर भाजपा मंे गये थे। हालांकि कांग्रेस के नेता भी टीएमसी का दामन थाम रहे हैं। कांग्रेस नेता कीर्ति आजाद और अशोक तंवर का कांग्रेस से मन भर गया। उनको भी दीदी पसंद आ रही हैं। ममता बनर्जी अब पूर्वोत्तर के राज्यों मंे अपने लिए मुफीद जगह देख रही हैं। साथ ही पंजाब व हरियाणा जैसे राज्यों मंे टीएमसी पैर पसार रही है। कांग्रेस का जहां तक सवाल है तो उसके नेता पार्टी को टूटने से बचाने मंे असमर्थ नजर आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश मंे जितिन प्रसाद के बाद रायबरेली की चर्चित विधायक अदिति सिंह ने भी 24 नवम्बर को भाजपा का दामन थाम लिया है। कांग्रेस की परम्परागत सीट रायबरेली पर अब भाजपा कांटा से कांटा निकाल रही है। अदिति सिंह को श्रीमती सोनिया गांधी के मुकाबले खड़ा किया जा सकता है। मेघालय मंे कांग्रेस के 19 विधायक थे लेकिन 2 ने उसी समय साथ छोड़ दिया था।
मेघालय के पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा राज्य के 17 कांग्रेस विधायकों में से 12 के साथ टीएमसी में शामिल हो गए हैं। सूत्रों ने बताया कि इस संबंध में विधायक पहले ही विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिख चुके हैं।कांग्रेस नेताओं के इस दल बदल के बाद तृणमूल कांग्रेस राज्य में प्रमुख विपक्षी दल बन गई है।पिछले कुछ महीनों से राज्य में तृणमूल कांग्रेस विस्तार की राह पर चल रही है। मेघालय में टीएमसी के विस्तार में कांग्रेस नेताओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया है। पार्टी इन राज्यों में अगले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर त्रिपुरा और गोवा में अपने पैर जमाने की कोशिश कर रही है। दो दिन पहले ही ममता बनर्जी की पार्टी ने तीन प्रमुख अधिग्रहण किए, जिससे टीएमसी कम से कम दो राज्यों हरियाणा और पंजाब में अपने पैर जमाने में सफल हुई है। पूर्व भारतीय क्रिकेटर और कांग्रेस नेता कीर्ति आजाद, जनता दल (यूनाइटेड) के पूर्व राज्यसभा सांसद पवन वर्मा और हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस की पृष्ठभूमि वाले कई अन्य नेता पिछले कुछ महीनों में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए हैं। इनमें सुष्मिता देव, लुईजिन्हो फालेरियो और अभिजीत मुखर्जी प्रमुख हैं।
तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने कई हस्तियों से मुलाकात की। ममता दिल्ली की यात्रा पर थीं। उनका राजनेता और लेखक सुधींद्र कुलकर्णी और गीतकार जावेद अख्तर से, भारतीय विदेश सेवा के पूर्व अधिकारी राजनेता पवन वर्मा से, पूर्व क्रिकेटर और राजनेता कीर्ति आजाद से और हरियाणा के राजनेता अशोक तंवर से मिलने का कार्यक्रम था। चर्चाएं थीं कि कीर्ति आजाद और अशोक तंवर, ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस में शामिल हांगेे। जनता दल यूनाइटेड के पूर्व सांसद पवन वर्मा के भी टीएमसी ज्वाइन करने की चर्चाएं थीं। गौरतलब है कि वर्ष 1983 की वर्ल्डकप विजेता भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्य कीर्ति आजाद बीजेपी से लोकसभा सांसद रह चुके हैं। बाद में बीजेपी छोड़कर उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। बंगाल चुनाव में धमाकेदार जीत के बाद ममता बनर्जी देशभर में अपना जनाधार बढ़ाने के लिए एक के बाद एक बड़े नेताओं को तोड़कर टीएमसी में शामिल करवा रही हैं। कांग्रेस के जो नेता टीएमसी ज्वाइन कर चुके हैं, उसमें सबसे बड़ा नाम महिला कांग्रेस अध्यक्ष रही सुष्मिता देव, गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के नेता लुईजिन्हो फेलेरियो, पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी और कांग्रेस के सीनियर नेता रहे कमलापति त्रिपाठी के प्रपौत्र ललितेश पति त्रिपाठी का है। इनमें से सुष्मिता और फलेरियो को तो ममता राज्यसभा का सांसद भी बना चुकी है।
कांग्रेस का जहां तक सवाल है तो उसके नेता लगातार साथ छोड़ रहे हैं। उत्तर प्रदेश मंे कांग्रेस के गढ़ से एक कांग्रेसी ने बीजेपी ज्वाइन कर लिया है। रायबरेली सदर से कांग्रेस की विधायक अदिति सिंह ने आखिरकार बीजेपी का दामन थाम ही लिया। उन्होंने अपने दादा धुन्नी सिंह की पुण्यतिथि के दिन ये फैसला लिया। लंबे समय से वे कांग्रेस से दूर और बीजेपी के करीब थीं। उनकी ज्वाइनिंग के बाद से ही ये चर्चा चल पड़ी है कि अदिति ने पार्टी तो बदल ली लेकिन, क्या अब वे अपनी सीट भी बदलेंगी। ऐसा इसलिए क्योंकि जिस रायबरेली सीट से वे विधायक हैं वो सीट बीजेपी ने कभी जीती ही नहीं। और तो और एक दो चुनावों को छोड़कर बीजेपी इस सीट पर हमेशा चैथी या पाचवीं पोजिशन पर रही। यानी पार्टी का काडर वोट रायबरेली में बहुत कमजोर है। ऐसे में 2022 के चुनाव में अदिति सिंह या तो एक नया इतिहास बनायेंगी या फिर अगले पांच साल के लिए इतिहास बनकर रह जायेंगी।
रायबरेली की सीट अदिति सिंह के परिवार के पास 1989 से रही है। इनके ताऊ अशोक कुमार सिंह 1989 और 1991 में जनता दल से विधायक थे। फिर इनके पिता अखिलेश कुमार सिंह साल 1993 से 2012 तक लगातार पांच बार विधायक रहे। 1993 से 2002 तक वे कांग्रेस से जीतते रहे लेकिन, 2007 में निर्दलीय और 2012 में पीस पार्टी से वे जीते। कांग्रेस ने उनकी दबंग छवि के कारण उन्हें निकाल दिया था। कमजोर सेहत के चलते उन्होंने अदिति को 2017 में मैदान में उतारा। ये उनकी राजनीतिक समझ ही थी कि कांग्रेस से खटपट के बावजूद उन्होंने अदिति को कांग्रेस से ही लड़ाया।
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में धमाकेदार जीत के बाद तृणमूल कांग्रेस ने देश के अन्य हिस्सों में अपनी पैठ जमाने की कोशिश तेज कर दी है। पूर्वोत्तर और गोवा जैसे राज्यों के बाद तृणमूल कांग्रेस ने देश के अन्य हिस्सों से भी नेताओं को अपने पाले में लाने की कवायद तेज कर दी है। इनमें से ज्यादातर कांग्रेस से आए नेता रहे हैं। पार्टी ने इस रणनीति के साथ साफ संकेत दिया है कि वह 2024 के आम चुनाव में बीजेपी से अकेले मोर्चा लेने के लिए तैयार है। कीर्ति आजाद पूर्व क्रिकेटर हैं,टीएमसी से पहले कांग्रेस और बीजेपी में रह चुके हैं। अब उन्होंने ममता बनर्जी के साथ नई सियासी पारी शुरू करने का फैसला किया है। अशोक तंवर राहुल गांधी के पूर्व सहयोगी रहे हैं जबकि पवन वर्मा जेडीयू के राज्यसभा सांसद हैं, जिन्हें पार्टी से निष्कासित किया जा चुका है। पवन वर्मा के बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से रिश्ते खराब हो गए थे और बाद में उन्हें पार्टी से भी निकाल दिया गया। वर्मा को जनवरी 2020 में जेडीयू से निकाला गया था। उसी समय जेडीयू के
उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने भी पार्टी छोड़ दी थी। प्रशांत किशोर अब पूर्णकालिक तरीके से चुनावी रणनीतिकार का काम कर रहे हैं और तृणमूल कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत दल के तौर पर पेश करने में जुटे हैं। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चैधरी ने कांग्रेस से दलबदल करने वाले इन नेताओं को अवसरवादी करार दिया है। साथ ही उन्होंने टीएमसी को बीजेपी का मुखौटा करार दिया है, जो सत्ताधारी दल के खिलाफ व्यापक दायरे वाले विपक्षी मोर्चे की संभावनाओं को चोट पहुंचा रही है। देश के 63 फीसदी लोगों ने 2019 में बीजेपी को वोट नहीं दिया था। कांग्रेस को 20 फीसदी लोगों ने वोट दिया था जबकि तृणमूल को 4 फीसदी वोट मिले। ऐसे में कांग्रेस के बिना क्या पाने की उम्मीद है। कांग्रेस के इन नेताओं के पहले भी कई दिग्गज पाला बदलकर टीएमसी में जा चुके हैं। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी, असम की सिल्चर सीट से कांग्रेस सांसद रहीं सुष्मिता देव के अलावा लुईजिन्हो फलेरियो भी हाल में पाला बदल चुके हैं। फलेरियो गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री रहे हैं। पार्टी में हर नए नेता की एंट्री तृणमूल कांग्रेस का बंगाल के बाहर पैर जमाने की ओर दिशा में उठाया गया कदम है। अशोक तंवर हरियाणा से ताल्लुक रखते हैं, जहां किसान आंदोलन बड़ा प्रभावी रहा है। कांग्रेस के नेता इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं। (हिफी)
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