संस्कार
संस्कार शिक्षा से आते
पीढ़ी दर पीढ़ी समाते
बालक के संस्कार देख
घराने पहचाने जाते
मेहमानों की हो मनुहार
बड़ों का आदर सत्कार
आव भगत आगंतुक की
मिले अनुजो को प्यार
मात पिता गुरु की सेवा
जो करते सदा सुख पाते
चरण छूकर आशीष लेते
सदा उन्नति और यश पाते
लोगों से मिल मुखमंडल
खुशियों से खिल जाता
अधरों पर मुस्कान मधुर
मोहक माहौल हो जाता
संस्कार विहीन सदा ही
संकट सदा खड़ा करते
ऊंच नीच का भेद न समझे
जिद पर सदा अड़े रहते
मात-पिता का करे निरादर
भ्रष्ट आचरण अपनाते
सदा क्लेश का कारण बनते
जीवन भर जो दुख पाते
अच्छे संस्कार बालक का
जीवन देते हैं संवार
घर परिवार राष्ट्र रोशन हो
उन्नति का है आधार
रमाकांत सोनी नवलगढ़
जिला झुंझुनू राजस्थान
रचना स्वरचित का मालिक है
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