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पुस्तक समीक्षा : 'स्मृतियों में संत रामरती दास

पुस्तक समीक्षा : 'स्मृतियों में संत रामरती दास'

समीक्षक:  राधेश्याम तिवारी,पूर्व संपादक, दैनिक जागरण, रेवाड़ी ( हरियाणा)
समकालीन हिंदी कविता के युवा हस्ताक्षर वेद प्रकाश तिवारी की दूसरी पुस्तक "स्मृतियों में संत रामरती दास" भारतीय संत परंपरा को दर्शाती हुई, संत परंपरा की अद्यतन कड़ी के रूप में संत रामरती दास जी के जीवन पर आधारित संस्मरण की एक अनूठी पुस्तक है। जिनके संसर्ग से लोगों के जीवन में अध्यात्मिक ऊर्जा का संचार हुआ। भारत सदियों से ऋषि मुनियों का देश रहा है इसलिए भारतीय संस्कृति को ऋषि मुनियों की संस्कृति कही जाती है । इस अवधारणा के मूल में संतों द्वारा दिए जाने वाले ज्ञान का प्रकाश एवं उनको ईश्वर की अनुभूति के साधन व मार्ग में उपदेश का अवदान ही मुख्य है। संत के प्रति अनन्य एवं अटूट श्रद्धा तथा सम्मान भी भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है । संत समागम के बगैर किसी भी प्रकार की लौकिक या आध्यात्मिक शक्तियां संभव नहीं हैं। किसी भी राष्ट्र के निर्माण में संतों की अहम भूमिका होती है । उन्हें किसी एक समाज से जोड़कर देखना उचित नहीं है क्योंकि संत मानव मात्र का हित करते हैं और ईश्वर से उसका साक्षात्कार कर आते हैं । संतों का जीवन निर्मल जल के समान होता है और संतों के उपदेश सदैव प्रेरणादाई होते हैं । जिन्हें आत्मसात कर व्यक्ति को अपना जीवन लोक कल्याण के कार्य में स्थापित करना चाहिए । यह पुस्तक उन लोगों के लिए विशेष जरूरी है, जो लोग सनातन धर्म और अपनी संस्कृति से विमुख होकर मनचाहा आचरण कर रहे हैं । इन जैसे लोगों से ही भारतीय संस्कृति को खतरा उत्पन्न हो गया है । पूरे हिंदू समाज को एक सूत्र में बांधने वाली यह पुस्तक राष्ट्र निर्माण में अपना अमूल्य योगदान निभाएगी । गांव या समाज में कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति जो समाज को दिशा देने का काम करता है उसकी स्मृतियों को संभाल कर रखना बहुत मुश्किल होता है। क्योंकि इस तरफ किसी का ध्यान जाता ही नहीं । ऐसे में कवि वेद प्रकाश तिवारी ने न सिर्फ संत रामरती दास की स्मृतियों को इकट्ठा किया बल्कि गांव के ऐसे बुजुर्ग जो संत रामरती दास से रूबरू हुए थे उनके संस्मरण को अपनी भाषा में लिखकर उन सभी को भी इस पुस्तक के माध्यम से हमेशा के लिए जिंदा रखने का प्रयास किया है।
कवि वेद प्रकाश तिवारी ने पहली पुस्तक कविता संग्रह 'बादल से वार्तालाप' के द्वारा पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया है । इस पुस्तक को पढ़ने के बाद ऐसा महसूस होता है कि वे पद्य के साथ-साथ अब गद्य विधा की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
मैं कवि व लेखक वेद प्रकाश तिवारी को उनकी इस दूसरी कृति के लिए हृदय की अनंत गहराइयों से धन्यवाद देता हूं और यह शुभकामना देता हूं कि उनकी साहित्य साधना निरंतर बनी रहे और समाज को उनके द्वारा दिशा मिलती रहे ।हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

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