उच्च सदन का सम्मान
(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
अभी 26 नवम्बर को हमने संविधान दिवस मनाया। प्रधानमंत्री और विपक्षी दल के नेताओं ने भी संविधान एवं उसको बनाने वालों को ससम्मान याद किया। संविधान दिवस हमंे संवैधानिक संस्थाओं का सम्मान करने की प्रेरणा देता है लेकिन हमारे जनप्रतिनिधियों को इससे कितनी प्रेरणा मिली है, यह संसद के दोनों सदनों और राज्य विधानसभाओं मंे हंगामे से पता चल जाता है। राज्यसभा तो संसद का उच्च सदन कहा जाता है। इसके सदस्यों से तो और भी ज्यादा मर्यादित आचरण की अपेक्षा की जाती है। राज्यसभा मंे पिछले मानसून सत्र मंे पेगासस और विवादित कृषि कानूनों को लेकर विपक्षी दलों के सदस्यों ने हंगामा किया था और सदन की कार्यवाही बाधित की। कुछ सांसदों ने तो हंगामा करते हुए मर्यादा की सीमा ही पार कर दी थी। ऐसे ही एक दर्जन राज्यसभा सदस्यों को अब शीतकालीन सत्र मंे सजा दी गयी है। सजा पाने वालों मंे कांग्रेस, भाकपा और बसपा के सांसद है जो हमारे देश की राष्ट्रीय पार्टियां हैं। राज्य सभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने बिल्कुल ठीक कहा था कि विधायिका मंे चर्चा- बहस होनी चाहिए। बाहर की राजनीतिक लड़ाई सदन की टेवल पर नहीं लड़ी जानी चाहिए। इसलिए अपेक्षा की जाती है कि शीतकालीन सत्र मंे जिन राज्यसभा सांसदों को सजा दी गयी है, उनसे दूसरे जनप्रतिनिधि भी सबक लेंगे।
संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन ही 29 नवम्बर को हंगामेदार शुरुआत हुई। राज्य सभा से 12 सांसद पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिये गए हैं। मॉनसून सत्र में हंगामा करने के लिए सांसदों के खिलाफ यह कार्रवाई हुई है।उच्च सदन के जिन 12 सांसदों को सस्पेंड किया गया है उनके नाम एल्मारम करीम (माकपा), फुलो देवी नेताम (कांग्रेस), छाया वर्मा (कांग्रेस), रिपुन बोरा (कांग्रेस), बिनोय विस्वाम (भाकपा), राजमणि पटेल (कांग्रेस), डोला सेन (तृणमूल कांग्रेस), शांत छेत्री (तृणमूल कांग्रेस), सैयद नासिर हुसैन (कांग्रेस), प्रियंका चतुर्वेदी (शिवसेना), अनिल देसाई (शिवसेना) और अखिलेश प्रसाद सिंह (कांग्रेस) हैं। उपसभापति हरिवंश की अनुमति से संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने इस सिलसिले में एक प्रस्ताव रखा जिसे विपक्षी दलों के हंगामे के बीच सदन ने मंजूरी दे दी। गौरतलब है कि संसद के मॉनसून सत्र में राज्यसभा में हंगामे के दौरान धक्का-मुक्की करने और सदन की मर्यादा का कथित तौर पर उल्लंघन करने के आरोपों के बाद राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने इस मामले की जांच के लिए एक समिति गठित की थी। इस समिति की सिफारिशों के आधार पर इन सांसदों के खिलाफ कार्रवाई की गई। संसद का शीतकालीन सत्र 23 दिसंबर तक प्रस्तावित है। संजय सिंह, प्रताप सिंह बाजवा वगैरह को इसलिए सस्पेंड नहीं किया गया क्योंकि उनका मामला दस अगस्त का था। जिन्हें सस्पेंड किया गया उनका मामला 11 अगस्त का है जो मॉनसून सत्र का अंतिम दिन था, इसीलिए उनके खिलाफ अब कार्रवाई की गई है। दूसरी ओर, विपक्ष का कहना है कि 12 सांसदों का निलंबन नियमों के खिलाफ है। नियम 256 के अनुसार सदस्य को सत्र के बाकी बचे समय के लिए निलंबित किया जाता है। चूंकि मॉनसून सत्र 11 अगस्त को ही समाप्त हो गया था ऐसे में इस सत्र में सदस्यों का निलंबन गलत है। विपक्ष के सदस्यों ने निलंबन को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी है। राष्ट्रीय जनता दल नेता और सांसद मनोज झा ने कहा कि अगर निलंबन वापस नहीं हुआ तो संभवत समूचा विपक्ष पूरे शीतकालीन सत्र का बहिष्कार करेगा। शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, मैं चेयरमैन से मिलूंगी। अगर बात नहीं सुनी गई तो कोर्ट में चैलेंज करूंगी। दूसरी ओर, बीजेपी कोटे से राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा कि विपक्ष के 12 सांसदों को निलंबित किया गया है क्योंकि उन्होंने मॉनसून सत्र के दौरान सदन में अराजकता फैलाई थी और सदन की मर्यादा का उल्लंघन किया था।
संसद के मॉनसून सत्र के दौरान उच्च सदन यानी राज्य सभा में हंगामे की जांच समिति से कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों ने दूरी बना ली थी। विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने सभापति को पत्र लिखकर कहा कि यह समिति, सांसदों को धमकाने का प्रयास है ताकि वे चुप रहें। उन्होंने कहा कि इससे लोक के प्रतिनिधियों की आवाज दबेगी और सरकार को जो नहीं सुहाता, उसे दरकिनार कर दिया जाएगा। इसलिए कांग्रेस 11 अगस्त की घटनाओं की जांच के लिए समिति बनाने के खिलाफ है और ऐसी किसी भी समिति में अपना प्रतिनिधि मनोनीत नहीं करेगी। राज्यसभा में 11 अगस्त को विपक्षी सांसदों ने जमकर हंगामा किया था। इसके बाद सात मंत्रियों ने सभापति से मुलाकात कर दोषी सांसदों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। खड़गे ने राज्य सभा स्थगित हो चुकी है। इस मसले को दोबारा उठाने से सांसद हतोत्साहित होंगे। उन्होंने कहा कि आम लोगों की अपेक्षा रहती है कि हम पेगासस स्पाइवेयर और नए कृषि कानूनों पर संसद में सरकार से सवाल पूछेंगे। कई विपक्षी सांसदों ने चर्चा के लिए नोटिस दिया था। हमने पेगासस स्पाइवेयर का मुद्दा उठाया क्योंकि ये हमारी बोलने की स्वतंत्रता और हमारे मौलिक अधिका से जुड़ा मामला है। सरकार चर्चा के लिए तैयार नहीं हुई। इसीलिए विपक्षी सांसद भावनाओं में बह गए थे।
गौरतलब है कि पेगासस और कृषि कानून मामले को लेकर संसद का मॉनसून सत्र इस बार विपक्ष के हंगामे से बुरी तरह प्रभावित रहा था। इसके चलते ज्यादातर समय कामकाज नहीं हो सका था। नौबत यहां तक आई थी कि अनुचित आचरण के लिए राज्यसभा के छह विपक्षी सांसदों को दिनभर के लिए निलंबित करना पड़ा था। नियम 255 के तहत इन सांसदों को दिन भर के लिए निलंबित किया गया था। ये सांसद राज्यसभा में सदन के भीतर प्ले कार्ड लेकर हंगामा कर रहे थे और चेयरमैन के बार-बार कहने के बावजूद सदन की कार्यवाही को बाधित कर रहे थे।
राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने कहा था कि सदन में सत्ता पक्ष और विपक्ष उनकी दो आँखों की तरह हैं और उनके लिए दोनों बराबर हैं। उन्होंने कहा कि ठीक तरह से दोनों आँखों से ही देखा जा सकता है और उनकी नजर में दोनों पक्ष बराबर हैं। उन्होंने कहा कि सदन की कार्यवाही सुचारुपूर्ण ढंग से चलाने के लिए दोनों की सामूहिक जिम्मेदारी है, अगर उनके सदन चलाने को लेकर किसी व्यक्ति का अलग मत है तो यह उनकी बुद्धिमत्ता पर निर्भर करता है। राज्यसभा के सभापति और उप राष्ट्रपति नायडू ने कहा कि विधायिका में चर्चा और बहस होनी चाहिए, बाहर की राजनीतिक लड़ाई सदन की टेबल पर नहीं लड़ी जानी चाहिए। संसद के मानसून सत्र में वर्ष 2014 के बाद सबसे अधिक हंगामे के बावजूद राजयसभा में औसतन एक से अधिक विधेयक हर दिन पारित किया गया। सत्र के दौरान उच्च सदन में राज्यों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) जातियों की पहचान और सूची तैयार करने का अधिकार देने वाले संविधान संशोधन विधेयक सहित 19 विधेयक पारित किए गये। (हिफी)
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