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विद्यार्थी हमारे राष्ट्र के भविष्य-राज्यपाल

विद्यार्थी हमारे राष्ट्र के भविष्य-राज्यपाल

‘‘विद्यार्थी हमारे राष्ट्र के भविष्य हैं, इसलिए उनकी बेहतर शिक्षा और तदुपरान्त उनके जीवन के विषय में सोचना समीचीन प्रतीत होता है।’’- यह बातें महामहिम राज्यपाल श्री फागू चैहान ने राजभवन के राजेन्द्र मंडप में आयोजित ‘चांसलर्स अवार्ड’ समारोह में
दीप प्रज्जवलित करने के उपरान्त संबोधित करते हुए कही।
महामहिम ने कहा कि विद्यार्थी जीवन के शुरूआती दौर में छात्र-छात्राओं की बड़ी-बड़ी कल्पनायें होती हैं- न्यूटन और आइंस्टीन की तरह खोज करना, देश की सेवा करना, समाज में शिक्षा की अलख जगाना, डाॅक्टर बनकर मरीजों की मुफ्त सेवा करना आदि। फिर बाद में सांसारिक चीजों के प्रति उनका आकर्षण बढ़ता है और उन्हें लगता है कि अमुक पेशे में अधिक पैसे हैं तथा उसे अपनाकर अधिकाधिक सुख-सुविधायें हासिल की जा सकती हैं। इस प्रकार वे स्वकेंद्रित बन जाते हैं और उनकी सारी कल्पनायें धरी की धरी
रह जाती हैं।
राज्यपाल ने कहा कि आज विद्यार्जन से अधिक महत्वपूर्ण करियर निर्माण हो गया है और इसकी ऊँचाई तक पहुँचने के प्रयास में युवाओं का समाज, परिवार और रिश्तेदारों से दूरी बनती जा रही है। यहाँ तक कि उनका खुद का जीवन भी प्रभावित हो रहा है। व्यक्ति चाँद पर तो पहुँच गया किन्तु अपने पड़ोसी तक नहीं पहुँच पा रहा है। अपनी ऊँची महत्वाकांक्षाओं के पूरा नहीं होने पर युवाओं का अवसादग्रस्त हो जाना और कभी-कभी उनके द्वारा कोई खतरनाक कदम उठा लेना अत्यन्त दुःखदायी है।
उन्होंने कहा कि हमारे विद्यार्थियों को ज्ञान-विज्ञान एवं विवेकसम्मत आचरण में सुशिक्षित होने के अतिरिक्त उनमें सामाजिक, नैतिक, चारित्रिक एवं मानवीय मूल्यों को धारण करने की पर्याप्त क्षमता का विकास होना अति आवश्यक है। साथ ही, उन्हें कड़ी मेहनत, अनुशासन, आत्मनियंत्रण, सेवापरायणता एवं नेतृत्व के गुणों को आत्मसात करने की जरूरत है। उन्हें इस प्रकार शिक्षित किये जाने की आवश्यकता है कि वे संयमी एवं विकारमुक्त बनें, जोश और होश -दोनों को सम्भाल सकें, सुविधाभोगी नहीं बनंे तथा उनमें विद्यानिष्ठा के साथ-साथ श्रमनिष्ठा भी हो।
राज्यपाल ने कहा कि प्राचीन काल से आजतक जो भारत बना, उसको शिक्षकों ने ही बनाया है। यहाँ एक से बढ़कर एक आचार्य हुए जिन्होंने समाज को तैयार किया और अपनी ओर से विद्या दान दिया। भारत को राजसत्ता ने नहीं बल्कि यहाँ के आचार्यों अथवा शिक्षकों ने बनाया। उन्होंने कहा कि आज के इस समारोह में प्राध्यापक, प्राचार्य और कुलपति भी उपस्थित हैं, जो मूलतः आचार्य ही हैं। आचार्य अथवा शिक्षक के तीन लक्षण बताये गये हैं- शीलवान, प्रज्ञावान और करूणावान। शीलवान साधु होता है, प्रज्ञावान ज्ञानी होता है और करूणावान माँ होती है। लेकिन आचार्य अथवा शिक्षक साधु, ज्ञानी और माँ- तीनों होता है।
शिक्षकों का काम शिक्षण के द्वारा समूचे समाज की रचना बदलने का है। वे तो शांतिमय क्रांति के अग्रदूत होते हैं इसलिए शिक्षकों को अपनी भूमिका पहचाननी होगी। देश की सर्वश्रेष्ठ संपत्ति के समान बच्चे शिक्षकों के हाथांे में सौंपे जाते हैं। उन्हें जो कुछ संस्कार, विद्या या मार्गदर्शन मिलेगा, वह शिक्षकों के जरिये ही मिलेगा। उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी का सही मार्गदर्शन करना शिक्षकों का परम कत्र्तव्य है ताकि वे सर्वसमर्थ और योग्य नागरिक बनकर देश और समाज की सेवा कर सकें। आज हम बाजारवाद और उपभोक्तावाद से प्रभावित हैं और अधिकाधिक धनार्जन एवं पद-प्रतिष्ठा पाने की चाहत में दिशाहीन और विवेकशून्य होकर भागे जा रहे हैं। ऐसे में शिक्षकों का दायित्व बनता है कि वे नई पीढ़ी को सम्भालें तथा उन्हें साधन और साध्य के बीच का अंतर को समझाना होगा।
राज्यपाल ने कहा कि सरकार शिक्षा के समग्र विकास के लिए सतत प्रयत्नशील है तथा इस दिशा में अनेक कदम उठाये गये हैं। नई शिक्षा नीति-2021 के तहत शैक्षिक पाठ््यक्रमों में नये कौशलों को सम्मिलित किया गया है तथा व्यावसायिक शिक्षा पर जोर दिया गया है। इसके फलस्वरूप विद्यार्थियांे को रोजगार के नये अवसर उपलब्ध होंगे तथा उन्हें स्वरोजगार शुरू करने में भी सहूलियत होगी। इस नीति के तहत मातृभाषा अथवा क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा प्राप्त किये जा सकते हैं। इससे समाज के सभी वर्ग के बच्चों को शिक्षा प्राप्त करना आसान होगा।
उन्होंने कहा कि बिहार के विद्यार्थी काफी मेधावी और परिश्रमी होते हैं तथा विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं में बड़ी संख्या में सफल होते रहे हैं। अनेक विद्यार्थियों को सर्वोच्च स्थान भी प्राप्त होते रहे हैं। मुझे अत्यधिक खुशी होगी, जब यहाँ के विद्यार्थी बिहार के महाविद्यालयांे, विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों में पढ़कर उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल करेंगे तथा उक्त पुरस्कार के विजेताओं की संख्या में विशेष बढ़ोत्तरी होगी।
महामहिम राज्यपाल द्वारा उच्च शिक्षा में गुणात्मक सुधार एवं नवाचारी प्रयोग आदि के अनुकूल प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण के निर्माण के उद्देश्य से आयोजित इस पुरस्कार समारोह में विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करनेवाले 06 विद्यार्थियों, कुलपति एवं प्राचार्य सहित 05 शिक्षकों तथा 02 महाविद्यालयांे को पुरस्कृत किया गया। उन्होंने कहा कि मुझे खुशी होगी, जब पुरस्कार विजेताओं की संख्या अत्यधिक होगी।
कार्यक्रम में स्वागत भाषण पटना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो॰ गिरीश कुमार चैधरी ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन मगध विश्वविद्यालय, बोधगया के प्रतिकुलपति
प्रो॰ विभूति नारायण सिंह ने किया। इस अवसर पर बिहार विधान परिषद् के माननीय कार्यकारी सभापति श्री अवधेश नारायण सिंह, राज्यपाल के सचिव श्री राॅबर्ट एल॰ चोंग्थू, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के कुलपति प्रो॰ सुरेन्द्र प्रताप सिंह, राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलपति एवं प्रतिकुलपतिगण, प्राचार्य एवं शिक्षकगण तथा छात्र-छात्राएँ सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
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