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क्या क्या देखे जमाने में

क्या क्या देखे जमाने में,

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क्या-क्या देखे जमाने में,
हम तुम्हें क्या-क्या बतायें,
लगी तन-मन में चोट कितनी,
तुम्हें कहाँ-कहाँ दिखायें।

किस-किसने हमें दर्द दिये,
किसके तुम्हें हम नाम बतायें,
सारे लोग हैं मेरे अपने,
किनका हम नाम छुपायें।

संयुक्त परिवार को टुटते देखा,
माँ बाप को झुकते देखा,
बेटा-बहु निकल गये नालायक,
माता-पिता को बिलखते देखा।

भाई-भाई को लड़ते देखा,
आपस में कट, मरते देखा,
नहीं रहा अब वो प्रेम भाईचारा,
मानवता को सिसकते देखा।

बंदर-भालू को नाचते देखा,
मूर्ख को कथा वाचते देखा,
खत्म हो रहा सामाजिक सौहार्द,
इंसान इंसान को छाँटते देखा।

कितना बदल गया अब इंसान,
इसका गिर गया अब मान,
खत्म हो रही इंसानियत जहाँ से,
"अकेला"ने लोगों का दम घुटते देखा।
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          अरविन्द अकेला
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