एमएसपी पर घनवत का सुझाव
(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
विवादास्पद तीनों कृषि कानून वापस लेने की घोषणा स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कर चुके हैं और इन्हंे वापस ले भी लिया जाएगा। इसके बावजूद किसान नेता राकेश टिकैत कहते हैं अभी आंदोलन समाप्त नहीं होगा। उन्हांेने किसानों की कई मांगें रखी हैं। इनमंे प्रमुख मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की है। एमएसपी को लेकर भाजपा के सांसद वरुण गांधी ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। सामान्य किसान भी इसी एमएसपी को लेकर नाराज हैं। अभी धान की सरकारी खरीद हो रही है। सरकार ने 1900 रुपये एमएसपी घोषित की है लेकिन किसी किसान से पूछकर देखिए तो यही बताएगा कि 1200 से 1300 रुपये प्रति कुंतल बेंचा है। मजे की बात यह कि कुछ दिनों बाद ही सरकार आंकड़े जारी करेगी कि इतने लाख कुंतल धान की सरकारी खरीद हुई है। सवाल है कि किसानों ने तो 12 सौ या 13 सौ रुपये कुंतल धान बेंचा, फिर वे कौन से किसान थे, जिनका धान 19 सौ रुपये प्रति कुंतल सरकार ने खरीदा? इस समस्या को हमें व्यावहारिक दृष्टि से देखना होगा। कृषि कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक समिति बनायी थी। उसके एक सदस्य अनिल घनवत थे। श्री घनवत ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखा है। उन्हांेने एक महत्वपूर्ण सुझाव एमएसपी को लेकर दिया है। सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। चुनाव के मद्देनजर सरकार को फैसले नहीं करने चाहिए। सरकारी खरीद में भ्रष्टाचार हो रहा है, उसे खत्म करना होगा।
कृषि कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त की गई समिति के सदस्य अनिल घनवत ने भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना को लेटर लिखकर कृषि सुधार से जुड़े मुद्दों पर शीर्ष अदालत को दी गई रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का आग्रह किया है। घनवत ने कहा, मैंने भारत के मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठी लिखकर मांग की है कि कृषि सुधार से जुड़े मुद्दों पर हमने जो रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के सामने रखी थी, उसे सार्वजनिक किया जाए। जनता के सामने नए कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट की कमेटी की रिपोर्ट आनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने में देरी हुई। अगर पहले रिपोर्ट को सार्वजनिक किया गया होता तो किसानों के आंदोलन को नियंत्रित किया जा सकता था। घनवत कहते हैं, भारत में 23 फसलों के लिए एमएसपी व्यवस्था न तो व्यावहारिक है और न ही अमल में लाने लायक है। सिर्फ गेहूं और चावल पर एक लाख 60 हजार करोड़ की सब्सिडी का बोझ सरकार पर पड़ता है। सरकार के पास वित्तीय क्षमता नहीं है कि वह 23 फसलों के लिए एमएसपी व्यवस्था बहाल करें। शेतकारी संगठन के अध्यक्ष घनवंत ने कहा, मैं प्याज का किसान हूं। हम भी मांग करते हैं कि प्याज पर भी एमएसपी मिलना चाहिए।फिर आलू, टमाटर, फ्रूट की खेती करने वाले किसान भी ऐसी मांग कर सकते हैं।
घनवत ने यह भी कहा है कि उन्हें इस बात का दुख है कि किसानों द्वारा उठाया गया मुद्दा अभी तक हल नहीं हुआ है। अपनी चिट्ठी में शेतकारी संगठन के अध्यक्ष घनवत ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने तीन कृषि कानूनों के कार्यान्वयन को निलंबित कर दिया था और 12 जनवरी 2021 को इन कानूनों पर रिपोर्ट करने के लिए एक समिति का गठन किया। समिति को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए दो महीने का समय दिया गया था। समिति ने बड़ी संख्या में किसानों और कई हितधारकों से परामर्श करने के बाद 19 मार्च 2021 को निर्धारित समय से पहले अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। समिति ने किसानों को अधिक से अधिक लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से सभी हितधारकों की राय और सुझावों को शामिल किया। रिपोर्ट में किसानों की सभी आशंकाओं का समाधान किया गया है। उन्होंने पत्र में कहा कि समिति को विश्वास था कि इन सिफारिशों से चल रहे किसान आंदोलन के समाधान का मार्ग प्रशस्त होगा। समिति के सदस्य के रूप में, विशेष रूप से किसान समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हुए, मुझे इस बात का दुख है कि किसानों द्वारा उठाया गया मुद्दा अभी तक हल नहीं हुआ है और आंदोलन जारी है।
सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त की गई कमेटी में कृषि विशेषज्ञ और शेतकारी संगठनों से जुड़े अनिल घनवत, अशोक गुलाटी और प्रमोद जोशी शामिल किए गए थे। घनवत के अलावा कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और प्रमोद कुमार जोशी समिति के अन्य सदस्य बनाए गए। हालांकि, बेहतर समन्वय की दृष्टि से आंदोलनकारी किसानों की ओर से किसान नेता बीएस मान को भी समिति में शामिल किया गया था, लेकिन मान ने विरोध के चलते कमेटी में शामिल होने से इंकार कर दिया। किसान संगठन इस समिति का विरोध करते रहे। उनका कहना था कि इसके सदस्य पहले ही कृषि कानूनों का समर्थन कर चुके हैं। नए कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले साल नवंबर से किसान संगठन प्रदर्शन कर रहे हैं।
सरकार ने किसान कल्याण की तमाम योजनाएं चलाई हुई हैं। कृषि सेक्टर के बजट में भी इजाफा किया है। साथ ही कई स्तर पर सीधे आर्थिक मदद भी की जा रही है। फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाना भी किसानों की आमदनी बढ़ाने की दिशा में सीधा कदम है। सरकार ने पिछले दिनों रबी सीजन की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफा किया था।
न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में बहुत से लोग वाकिफ नहीं होंगे कि ये एमएसपी क्या होता है और ये कैसे तय किया जाता है, एमएसपी से किसानों को क्या फायदा होता है। मिनिमम सपोर्ट प्राइस या एमएसपी किसानों की फसल की सरकार द्वारा तय कीमत होती है। एमएसपी के आधार पर ही सरकार किसानों से उनकी फसल खरीदती है। राशन सिस्टम के तहत जरूरतमंद लोगों को अनाज मुहैया कराने के लिए इस एमएसपी पर सरकार किसानों से उनकी फसल खरीदती है। बाजार में उस फसल के रेट भले ही कितने ही कम क्यों न हो, सरकार उसे तय एमएसपी पर ही खरीदेगी। इससे किसानों को अपनी फसल की एक तय कीमत के बारे में पता चल जाता है कि उसकी फसल के दाम कितने चल रहे हैं। सुई से लेकर हवाई जहाज तक बनाने वाली कंपनियां अपने सामान की बिक्री की कीमत तय करके उसे बाजार में बेचती हैं, लेकिन किसान खुद अपनी फसल की कीमत तय नहीं कर सकता। इसके लिए उसे आढ़तियों और सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है। ऐसा नहीं है कि किसी फसल की एमएसपी तय हो जाने के बाद बाजार में वह उसी कीमत पर मिलेगी।
कोई किसान नहीं चाहता कि उसकी फसल एमएसपी से कम दाम पर बिकी, लेकिन होता यह है कि जब फसल की बिक्री का समय आता है तो मंडियों में सरकारी खरीद केंद्रों पर फसलों से भरे ट्रैक्टर, ट्रकों की लंबी लाइन लग जाती है। किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए कई-कई दिन इंतजार करना पड़ता है। इसके अलावा अधिकर सरकारी केंद्रों पर कुछ ना कुछ दिक्कत रहती है। कभी बारदाने की कमी तो कभी लेबर की और कभी तो सरकारी खरीद केंद्र तय समय से बहुत देरी से खुलते हैं। इन सब बातों के चलते किसानों को अपनी फसल कम दाम पर आढ़तियों को बेचनी पड़ती है। (हिफी)हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
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