Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

कलयुग का अश्वमेध यज्ञ

कलयुग का अश्वमेध यज्ञ

जयपुर में हुआ था दुनिया का आखिरी अश्वमेध यज्ञ: घी से भर गई थी 50 फीट गहरी बावड़ी, 3 करोड़ लोगों को कराया था भोज
18 नवंबर 1727 को बसा जयपुर आज 294 साल का हो गया है। शतरंज के आकार में बसाए गए जयपुर की सीमा 9 मील की थी, जिसे ब्रह्मांड में नौ ग्रहों के नवनिधि सिद्धांत पर वास्तुकला के आधार पर नौ चौकड़ियों में बसाया गया। ज्योतिष विद्वान पंडित जगन्नाथ सम्राट, विद्याधर भट्‌टाचार्य और राजगुरू रत्नाकर पौंड्रिक सहित कई विद्वानों ने जयपुर की स्थापना के लिए गंगापोल पर नींव रखी थी।
इस खूबसूरत शहर की नींव रखने के समय सवाई जयसिंह (द्वितीय) ने अश्वमेध यज्ञ करवाया था। इतिहासकारों के मुताबिक यह संसार का आखिरी और कलयुग का पहला अश्वमेध यज्ञ था।
ब्रह्मांड के नौ ग्रहों के आधार पर जयपुर को नौ चौकड़ियों में बसाया गया। इनमें दो चौकड़ियों में राजपरिवार और शासकीय भवन बनाए। बाकी सात चौकड़ियों में आमजन को बसाया।
जयपुर फाउंडेशन के संस्थापक सियाशरण लश्करी बताते हैं कि करीब पांच हजार वर्ष पहले महाभारत काल में पांडवों ने अंतिम अश्वमेध यज्ञ करवाया था। सवाई जयसिंह ने यज्ञ करवाने के लिए गुजरात के विशेष पंडितों को यहां बुलाया था। इन्हीं पंडितों को ब्रह्मपुरी में बसाया गया था।
पंडित जगन्नाथ सम्राट की अध्यक्षता में गंगापोल पर जयपुर की नींव रखी गई। जिसमें आमेर के खजाने से करीब 1084 रुपए का खर्चा हुआ। नींव रखने की खुशी में सम्राट जगन्नाथ को हथरोई गांव की आठ बीघा जमीन दी गई। यह आजकल अजमेर रोड के पास हथरोई गढ़ी कहलाता है।
सवा साल तक चले अश्वमेध यज्ञ में 3 करोड़ लोगों को कराया था भोज
अश्वमेध यज्ञ के लिए दक्षिण भारत से वर्धराजन (भगवान विष्णु) की प्रतिमा जयपुर लाई गई थी। इसे तत्कालीन जागीरदार हीदा मीणा लेकर आए थे, जिनके नाम से आज सूरजपोल बाजार में रामगंज के पास हीदा की मोरी पहचानी जाती है। सियाशरण लश्करी के मुताबिक अश्वमेध यज्ञ करीब सवा साल चला था। तब सवाई राजा जयसिंह और उनकी पत्नी ने 3 करोड़ लोगों को जिमाने (भोजन करवाने) का संकल्प लिया था। करीब सवा साल तक चले इस यज्ञ के पूरा होने तक लोगों को भोजन करवाया गया।
पुरानी बस्ती में स्थित है 300 साल पुरानी यज्ञशाला की बावड़ी। कहा जाता है कि अश्वमेध यज्ञ का प्रधान कुंड इसी के पास बनाया गया था। यहीं बावड़ी को घी से भर दिया गया था।
यज्ञ में मिट्‌टी के गणेश को पहाड़ी पर किला बनाकर स्थापित किया, नाम पड़ा गढ़ गणेश
ऐसी भी किवदंतियां है कि तब 52 हाथ का यानी करीब 65 फीट का एक हरे रंग का सांप रोजाना यज्ञ स्थल पर एक नियत स्थान पर आकर बैठता था। इसके बाद वह कभी नजर नहीं आया। यज्ञ में जिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की गई। उन भगवान वर्धराजन का मंदिर आज आमेर रोड पर जलमहल के सामने स्थित है। इसी तरह यज्ञ में मिट्‌टी के गणेश की प्रतिमा बनाई गई थी।
अश्वमेध यज्ञ में मिट्‌टी के गणेश जी की पूजा की गई। यज्ञ समाप्ति के बाद उत्तर दिशा में अरावली की पहाड़ी की एक चोटी पर किला बनाकर गणेश जी को स्थापित किया, जिसको आज गढ़ गणेश मंदिर कहा जाता है।
यज्ञ पूरा होने के बाद भगवान गणेश की प्रतिमा को जयपुर में उत्तर दिशा में अरावली पर्वतमाला की चोटी पर विराजित करवाया गया। आज यह स्थान गढ़ गणेश के नाम से प्रसिद्ध है। लश्करी के मुताबिक हवन में भगवान शिव की पूजा भी की गई। वह मूर्ति आज ब्रह्मपुरी में है, जो कि जागेश्वर महादेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। वहीं, हनुमान जी की प्रतिमा को जलमहल के सामने स्थापित किया। जो कि काले हनुमान जी का मंदिर है।
यज्ञशाला की बावड़ी के पास आज भी प्रधान कुंड की जगह पर एक प्रतीक चिन्ह है। जिसमें अब हनुमान जी का मंदिर है। आठ पीढ़ियों से पुजारी यहां सेवा पूजा कर रहे हैं।
यज्ञ के लिए घी से भर गई थी बावड़ी, नाम पड़ा यज्ञ शाला की बावड़ी
इस अश्वमेध यज्ञ के लिए "प्रधान कुंड" पुरानी बस्ती में नाहरगढ़ किले के नीचे बनाया गया था। यहीं, एक बावड़ी का निर्माण करवाया गया। बताया जाता है कि यज्ञ के लिए इस बावड़ी को घी से भरा गया था। आज भी वह स्थान यज्ञ शाला की बावड़ी के नाम से पहचान रखती है। वहीं, बावड़ी के पास जहां प्रधान यज्ञ कुंड था, वहां भगवान हनुमान जी और भगवान राम ठाकुर जी के रूप में विराजमान है।
यहीं, एक प्रतीक चिन्ह भी है। लश्करी के मुताबिक आजादी के करीब 10 साल पहले त्रिपोलिया गेट के नीचे खुदाई के दौरान सुरंग मिली थी। जिसमें अश्वमेध यज्ञ की चौकियां और पेटिंग्स निकली थीं। इनको राजपरिवार ने खास मोहर में रखवा दिया था।
जयपुर की स्थापना के वक्त पूर्व दिशा में सूरजपोल और पश्चिम दिशा में चंद्रपोल गेट (चांदपोल) बनाया। 200 साल पहले चांदपोल गेट का दृश्य
भगवान राम के पुत्र कुश से जुड़ा है जयपुर का पूर्व राजपरिवार
बता दें कि जयपुर का पूर्व राजपरिवार भगवान राम के वंशजों से जुड़ाव रखता है। कहा जाता है कि पूर्व राजघराने के महाराजा पद्मनाभ भगवान राम के बड़े पुत्र कुश की 309वीं पीढ़ी है। कुश की राजधानी बिहार में रोहिताशगढ़ हुआ करती थी। यहीं से उनकी पीढ़ियां मध्यप्रदेश में नरवर नाम की जगह पर पहुंची। वहां से दौसा आए। फिर रामगढ़ में कच्छवाहा वंश के राजाओं का राज रहा। इसके बाद वे आमेर पहुंचे और इसी को अपनी राजधानी बनाया। इसके बाद 1727 में जयपुर में गंगापोल पर स्थापना के लिए नींव रखी।
इतिहास के पन्नों में दर्ज है अश्वमेध यज्ञ का वर्णन। जिसमें कहा गया है कि यज्ञ समाप्ति के वक्त एक कन्या उत्पन्न हुई, जिसने भूत और भविष्य की बातें कही। बाद में, वह अदृश्य हो गई। इसी तरह, 52 हाथ लंबे एक हरे रंग के सर्प को आह्वान कर बुलाया गया। तो आइए पधारिए जयपुर में आपका स्वागत है और इस ऐतिहासिक नगरी जो राजस्थान की राजधानी हैं और गुलाबीनगरी के नाम से विश्व विख्यात हैं !
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ